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संस्कारशाला : शिक्षक ईश्वर का उपहार, बिना भेदभाव के खोलते ज्ञान का भंडार

समाज में शिक्षक का महत्व प्राणवायु की भांति है। वह मिट्टी के घड़े रूपी बच्चों को ठोक पीट, सहलाकर भविष्य का निर्माता बनाता है। जहां घर में एक दो छोटे बच्चों को अभिभावक को संभालने में पसीने छूट जाते हैं वहीं शिक्षक हैं कि बड़ी संख्या में उन्हें देश का भविष्य बना देते हैं। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में शिक्षक का महत्व विषय पर शिक्षकों ने कुछ इस तरह अपने विचार उकेरे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 08:32 PM (IST)Updated: Wed, 12 Sep 2018 08:32 PM (IST)
संस्कारशाला : शिक्षक ईश्वर का उपहार, बिना भेदभाव के खोलते ज्ञान का भंडार
संस्कारशाला : शिक्षक ईश्वर का उपहार, बिना भेदभाव के खोलते ज्ञान का भंडार

चंदौली : समाज में शिक्षक का महत्व प्राणवायु की भांति है। वह मिट्टी के घड़े रूपी बच्चों को ठोक पीट, सहलाकर भविष्य का निर्माता बनाता है। जहां घर में एक दो छोटे बच्चों को संभालने में अभिभावक के पसीने छूट जाते हैं तो शिक्षक उन्हें देश का भविष्य बना देते हैं। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में शिक्षक का महत्व विषय पर शिक्षकों ने कुछ इस तरह अपने विचार उकेरे। शिक्षक ईश्वर का अद्भुत उपहार

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शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। वह ईश्वर का अछ्वुत उपहार है जो हमेशा से ही बिना किसी भेदभाव के बच्चों को अच्छे-बुरे का ज्ञान कराता है। योग्य शिक्षक सदैव विद्यार्थी की प्रत्येक गलती को क्षमा करने की भावना रखता है और उसकी हर कमजोरी दूर कर उसके सफलता के शिखर तक ले जाता है। प्रत्येक समाज में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। एक शिक्षक ही बच्चों को अपनी ज्ञान रूपी गंगा में स्नान कराकर अच्छा एवं योग्य नागरिक बनाने की दिशा में प्रयास करता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि सफल व्यक्तित्व के पीछे किसी न किसी शिक्षक का हाथ होता है। तभी तो चाणक्य ने कहा शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गाोद में खेलते हैं। मैं उसी को योग्य एवं सफल शिक्षक मानता जिसमें समाज को सही दिशा एवं दशा देने की काबिलियत हो। तभी तो योग्य शिक्षक ही भावी राष्ट्र का पथ प्रदर्शक एवं निर्माता कहा जाता है।

डा. रामचंद्र शुक्ल, प्रधानाचार्य

महेंद्र टेक्निकल इंटर कालेज

-------------------- समाज में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण

बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं। इस भविष्य का निर्माण करने वाला शिक्षक ही होता है। इसलिए इसे भविष्य का निर्माता कहा जाता है। शिक्षक ईश्वर का दिया हुआ वह उपहार है जो हमेशा से बिना किसी स्वार्थ, भेदभाव के बच्चों को सही व गलत का बोध कराता है। प्रत्येक समाज में अध्यापक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि समाज उन्हीं बच्चों से मिलकर बनता है जिनको परिपक्व कर समाज में श्रेष्ठ इन्सान बनने की जिम्मेदारी अध्यापक की ही मानी जाती है। वास्तव में देखा जाए तो गुरु को ईश्वर के समान दर्जा प्राप्त है। उनका स्थान सदैव सम्मानीय ही रहेगा। भारतीय धर्म में तीन प्रकार के ऋणों का उल्लेख है। प्रथम पितृ, ऋषि व देव ऋण, इसमें पितृ ऋण से मुक्ति माता पिता की सेवा करके, ऋषि ऋण शिक्षा अध्ययन कर अपने माता पिता और अध्यापक को सम्मान देकर चुकाया जा सकता है। मेरा मानना है कि सही शिक्षक वही है जिसका समाज में असर दिखे।

डा. कृष्णकांत तिवारी, प्रधानाचार्य, सर्वोदय इंटर कालेज अरंगी

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व्यक्ति नहीं पीढि़यों का भविष्य है शिक्षक

शिक्षक की परिभाषा बदलते परिवेश में बदलती जा रही है। किसी काल खंड में जिन शिक्षकों के पास सिर्फ शिक्षा व संस्कार देने की जिम्मेदारी हुआ करती थी अब उनके पास अनेक शिक्षणेत्तर गतिविधियों को भी संपादित करने की जिम्मेदारी आ पड़ी है। ऐसे में मूल शिक्षण कार्य प्रभावित होना स्वभाविक हो गया है। बावजूद इसके शिक्षक व्यवस्थागत समस्याओं से जूझते हुए शिक्षण कार्य पूरी जिम्मेदार व निष्ठा के साथ कर रहे हैं। यही कारण है कि आज बच्चों में तीव्र बौद्धिक क्षमता बढ़ी है। हम यह कह सकते हैं कि शिक्षक एक ऐसा वायु मंडल तैयार करता है जिससे निकलने वाली हवाएं प्राणवायु के अलावा समाज व शिक्षार्थी के अंदर एक गंभीर व सकारात्मक बदलाव लाती है। हां, यह गुण तभी हो सकता है जब शिक्षक की प्रतिबद्धता व समर्पण अध्यापन कार्य में होगी।

कैलाश प्रसाद, प्रधानाध्यापक, प्राथमिक विद्यालय, चकिया

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शिक्षक देश की प्राणवायु के संवाहक

शिक्षा किसी भी देश की प्राणवायु है और शिक्षक होते हैं उसके संवाहक, संवर्धक और उन्नायक। वस्तुत: शिक्षक राष्ट्र निर्माता एवं भावी पीढ़ी का भाग्य विधाता होता है। वह मानवीय मूल्यों का सर्जक, शिल्पी और राष्ट्र का प्रहरी होता है। अपने छात्रों की सुप्त प्रतिभा का उन्मेष कर उनके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर उन्हें ऐसे सुयोग्य चरित्रवान नागरिक के रूप में प्रतिस्थापित करता है जो अपने जीवन के चुनौतियों का सामना कर सके। राष्ट्र की जिम्मेदारी का बोझ उठा सके। शिक्षक की भूमिका छात्र तक महज सूचनार्थ व जानकारियों के सम्प्रेषण तक सीमित नही रहती। छात्र शिक्षक से सुनकर ही नही, देखकर भी सीखता है। वह केवल उस वक्त ही नही सीखता, जब कक्षा में होता है, बल्कि उस वक्त भी सीखता है जब शिक्षक कक्षा के बाहर होता है।

-डा. नागेंद्र मिश्र, प्रधानाचार्य,

अमर शहीद विद्यामंदिर इंटर कालेज


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