नमाज व जकात के बाद सबसे अहम इबादत है रोजा
मजहब-ए-इस्लाम में नमाज और जकात के बाद सबसे अहम इबादत रोजा है। इस मुबारक महीने में अल्लाह पाक जन्नत के दरवाजे को खोल देते हैं और एक रवायत है कि आसमान के दरवाजे को खोल दिया जाता है और दोजख के दरवाजे को बंद कर दिया जाता है। यही नहीं इस माह-ए-मुबारक में शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है। बंदा मोमिन इस मुबारक महीने में नफिल अदा करता है तो अल्लाह तआला उस बंदे को फर्ज का सवाब अता करते हैं।
जागरण संवाददाता, पीडीडीयू नगर (चंदौली) : मजहब-ए-इस्लाम में नमाज और जकात के बाद सबसे अहम इबादत रोजा है। इस मुबारक महीने में अल्लाह पाक जन्नत के दरवाजे को खोल देते हैं और एक रवायत है कि आसमान के दरवाजे को खोल दिया जाता है और दोजख के दरवाजे को बंद कर दिया जाता है। यही नहीं इस माह-ए-मुबारक में शैतानों को जंजीरों में जकड़ दिया जाता है। बंदा मोमिन इस मुबारक महीने में नफिल अदा करता है तो अल्लाह तआला उस बंदे को फर्ज का सवाब अता करते हैं।
उक्त बातें खतीब व इमाम मीनारह मस्जिद, कसाब महाल के डा. मुहम्मद हामिद रजा खान रिजवी ने सोमवार को कहीं। उन्होंने कहा कि इस माह-ए-मुकद्दस में एक रात ऐसी है जो हजारों महीनों की इबादत से अफजल है। वो रात शब-ए-कद्र की की रात है। अल्लाह रब्बुल इज्जत के महबूब प्यारे नबी हजरत मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम ने फरमाया है कि 'शब-ए-कद्र को रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश करो। 21, 23, 25, 27, 29 की शब की तारीखों में वो एक रात मिल जाएगी।'
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