Road safety in Chandauli : ट्रामा सेंटर की व्यवस्था नहीं होने के कारण रास्ते में निकल जा रहा घायलों का दम
हादसे में घायल व्यक्ति की सहायता पुण्य कार्य जैसा है। गोल्डन आवर में घायल को अस्पताल पहुंचाकर उसकी अनमोल जान बचाई जा सकती है। वैसे तो जनपद में सरकारी ट्रामा सेंटर नहीं है। वैसे हाइवे पर कई निजी ट्रामा सेंटर जरूर हैं लेकिन इसमें दो-तीन ही बेहतर हैं।
जागरण संवाददाता, चंदौली : तमाम प्रयासों के बावजूद ट्रामा सेंटर जनपद में नहीं बन पाया। इस कारण गंभीर घायलों को यहां से मजबूरी में रेफर करना पड़ता है। जिला अस्पताल के आपातकालीन विभाग में ही घायलों के प्राथमिक उपचार की सुविधा है।
हालांकि अब मेडिकल कालेज बन रहा है तो ट्रामा सेंटर भी उच्चीकृत अस्पताल में बनेगा। अभी इसमें वक्त लगेगा। दरअसल, गंभीर घायलों के आपरेशन यहां नहीं हो पाते। कोई सड़क हादसे में गंभीर घायल है तो यहां कोई सुविधा नहीं है। कोई भी चिकित्सक ऐसा नहीं, जो यहां सर्जरी कर सके।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर एनएचएआई का सिर्फ एक एंबुलेंस है। जिला प्रशासन के 46 में से सिर्फ पांच एंबुलेंस को राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने वाले हादसे में घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए लगाया गया है। जिला अस्पताल एनएच टू के ठीक किनारे स्थित है।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर होनी वाली दुर्घटना में घायलों को सबसे पहले यही भर्ती कराया जाता है। विडंबना यह है कि आपातकालीन चिकित्सा की पूरी व्यवस्था होने के बाद भी अधिकांश घायलों को रेफर कर दिया जाता है। जबकि अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि उन्हीं घायलों को ट्रामा सेंटर रेफर किया जाता है, जिनकी स्थिति काफी नाजुक होती है। जिला अस्पताल के इमरजेंसी में पांच लोगों के एक साथ इलाज की सुविधा है।
एसपीओ टू के माध्यम से पल्स रेट मानीटर पर देख सकते हैं। आक्सीजन सेचुरेशन पता करने के लिए भी आवश्यक उपकरण हैं। इसीजी, रक्तचाप नापने के साथ आपातकाल की पर्याप्त दवा भी उपलब्ध है। ब्लड बैंक भी अस्पताल परिसर में ही है। आक्सीजन सिलेंडर भी पर्याप्त है। इमरजेंसी के लिए 24 घंटे चिकित्सक उपलब्ध रहते हैं। दो लाइफ सपोर्टिंग एंबुलेंस के साथ चार अन्य एंबुलेंस है, लेकिन मेडिकल कालेज के लिए आवास तोड़ दिए जाने के कारण चालक को फोन करके बुलाना पड़ता है। पहले चालक यहीं रहते थे।
नौ माह में 99 लोगों की मौत
ट्रामा सेंटर न होने के कारण गंभीर घायलों को उचित उपचार नहीं मिल पाता, इस वजह से जनवरी से सितंबर तक 99 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है। जब गंभीर घायलों को वाराणसी रेफर किया जाता है तो वहां तक पहुंचने में भी काफी देरी हो जाती है। लोगों का खून अधिक बह जाता है। इसके फल स्वरूप लोगों की मौत हो जाती है। यह स्थिति अब से नहीं बल्कि दशकों से बनी हुई है।
दुर्घटना में घायल का रक्तस्राव रोकना जरूरी
जिला अस्पताल के डा. ज्ञान प्रकाश सिंह ने कहा कि समय से दुर्घटना में घायल का उपचार शुरू न हो और उसके शरीर से ज्यादा खून बह जाए तो जान बचाने के लिए खून को रोकना जरूरी हो जाता है। वहीं कुछ मामलों में हादसे के बाद कुछ लोगों को शाक लग जाता है। ऐसी स्थिति में हार्ट अटैक आने का खतरा ज्यादा हो जाता है। हार्ट अटैक के दौरान रक्तसंचार अवरुद्ध होने से भी हृदय की गति प्रभावित होकर बिगड़ जाती है। इस स्थिति में अगले कुछ मिनट का समय बेहद कीमती होता है।
घायल की मदद करने पर नहीं चलेगा मामला
कई लोग ये सोचकर मदद करने के लिए आगे नहीं आते कि बाद में उन्हें परेशानी हो सकती है। मोटर वाहन संशोधन अधिनियम 2019, धारा-134ए के तहत सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने वाले व्यक्ति पर उस घटना के लिए किसी भी तरीके से कोई केस नहीं चलाया जाएगा। अस्पताल पहुंचने से पहले ही घायल व्यक्ति की मौत भी हो जाए तो पहुंचाने की कोशिश करने वाले व्यक्ति पर कोई मामला नहीं चलाया जाएगा।
गंभीर घायलों के लिए यहां उपचार मुहैया होगा
मेडिकल कालेज निर्माणाधीन है। इसमें ट्रामा सेंटर बनेगा। गंभीर घायलों के लिए यहां उपचार मुहैया होगा। यहां से बाहर रेफर करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
डा. वाईके राय, मुख्य चिकित्साधिकारी।