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न मुद्दा न नारा, बस मुखिया का सहारा

लोकतंत्र के महापर्व में संसदीय सीट पर अंतिम चरण में होने वाले मतदान को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। चुनावी युद्ध में सेनापतियों के साथ सेनाएं सज्ज होकर मैदान में उतर गई हैं। जीत सुनिश्चित करने को एड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा। इसमें जातीय ध्रुवीकरण के साथ मुखिया के सहारे को तरजीह दी जा रही। ऐसे में मुद्दा व नारे गौण हो गए हैं। दलों की ओर

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 10:11 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2019 10:11 PM (IST)
न मुद्दा न नारा, बस मुखिया का सहारा
न मुद्दा न नारा, बस मुखिया का सहारा

जासं, चंदौली : लोकतंत्र के महापर्व में संसदीय सीट पर अंतिम चरण में होने वाले मतदान को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। चुनावी युद्ध में सेनापतियों के साथ सेनाएं मैदान में उतर गई हैं। जीत सुनिश्चित करने को एड़ी-चोटी का जोर लगाया जा रहा। इसमें जातीय ध्रुवीकरण के साथ मुखिया के सहारे को तरजीह दी जा रही। ऐसे में मुद्दा व नारे गौण हो गए हैं। दलों की ओर से चुनावी सभा को लेकर मंथन का दौर जारी है।

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उम्मीदवारों के चुनावी गतिविधियों और सियासी माहौल की पड़ताल करें तो एक बात बिल्कुल साफ नजर आती है कि वोटरों की खामोश मिजाजी के चलते प्रत्याशियों का आत्मविश्वास डिगा हुआ है। कम से कम कोई भी उम्मीदवार अपनी जीत को लेकर आश्वस्त भरा दावा कर पाने की स्थिति में तो नहीं है। प्रत्याशियों के लिए अपने-अपने दलों के मुखिया का सहारा सिर चढ़कर बोल रहा है। जातीय समीकरणों को अपने पक्ष में करने के लिए भी उम्मीदवार एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। पहले बात गठबंधन (सपा, बसपा) की करें तो यहां सपा ने अपना उम्मीदवार उतारा है। उम्मीदवार को उतारने में जातीय समीकरण को ही तरजीह दी गई है। पार्टी यह मानकर चल रही है कि परंपरागत वोट के साथ अन्य वोटर पाले में आए तो जीत की ओर कदम बढ़ सकते हैं। पार्टी मुखिया का हवाला देकर वोटरों को एक मंच पर लाने की कोशिश की जा रही है। वहीं भाजपा ने एक बार फिर पुराने चेहरे पर ही दांव लगाया है। पार्टी को उम्मीद है कि पांच साल के विकास के सांचे में वोटर फिट बैठ जाएंगें। प्रत्याशी व कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि मुखिया के नाम पर उनकी जीत सफलता की डोर पकड़ लेगी। इसी का परिणाम है कि मुखिया के नाम का वास्ता देना नहीं भूल रहे। इसके अलावा पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को अपने पाले में करने की भरपूर कोशिश की जा रही है। उधर मैदान छोड़ चुकी कांग्रेस ने जन अधिकार पार्टी की उम्मीदवार को अपना समर्थन दिया है। वहीं अन्य दलों की ओर से भी उम्मीदवार चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं। चुनावी सभाओं का दौर परवान चढ़ गया है। पीएम मोदी के साथ सपा मुखिया व अन्य बड़े नेताओं की सभाएं सुनिश्चित की जा रही हैं।

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