राबर्ट्सगंज सीट-अबकी ईवीएम में नहीं होगा हाथी का चुनाव चिन्ह
राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के लिए चुनाव में प्रयोग होने वाली ईवीएम पर इस बार हाथी चुनाव चिन्ह नहीं होगा। वजह सपा व बसपा का गठबंधन है। इसके चलते यह सीट समाजवादी पार्टी की झोली में चली गई तो चुनावी रणभूमि में पार्टी ने अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया। ऐसे में बसपा के नेता व कार्यकर्ताओं को साइकिल वाली बटन दबानी होगी। यहां 2014 के लोस व 2017 के विस चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही।
जासं, चकिया (चंदौली) : राबर्ट्सगंज लोकसभा सीट के लिए चुनाव में प्रयोग होने वाली ईवीएम पर इस बार हाथी चुनाव चिन्ह नहीं होगा। वजह, सपा व बसपा का गठबंधन है। इसके चलते यह सीट समाजवादी पार्टी की झोली में चली गई तो चुनावी रणभूमि में पार्टी ने अपना उम्मीदवार खड़ा कर दिया। यहां 2014 के लोस व 2017 के विस चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही।
आम चुनाव में अब तक समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह हर बार दिखाई देते थे। इस बार के लोस चुनाव में दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ है। यह सीट 1962 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक सुरक्षित है। यहां जातीय आंकड़े के आधार पर प्रत्याशी मैदान में उतारे जाते हैं। सपा ने इस बार भाईलाल कोल को प्रत्याशी बनाया है। बसपा ने इस सीट पर गठबंधन के चलते उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है।
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रामस्वरूप व रामसकल लगा चुके हैं हैट्रिक
राबर्ट्सगंज सीट पर होने वाले लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डालें तो आजादी के बाद 1962 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस के रामस्वरूप सांसद चुने गए थे। उन्होंने इस सीट पर हैट्रिक लगाई थी। भाजपा के रामसकल भी लगातार तीन बार सांसद रहे। यहां कांग्रेस व भाजपा ने अब तक पांच-पांच बार परचम लहराया है।
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2009 में सपा ने दर्ज की जीत
16 वीं लोकसभा चुनाव तक एक-एक बार सपा व बसपा के उम्मीदवार जीत हासिल कर दिल्ली का सफर कर चुके हैं। सीट पर 2004 में हाथी तो 2009 के चुनाव में साइकिल चल पड़ी थी। बसपा के लालचंद्र कोल व सपा के पकौड़ी लाल के सिर जीत का सेहरा बंधा था। अब जीत दर्ज करने को दोनों पार्टियां एक मंच पर आ गई हैं।