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कान्हा सखीयन पर लोभायो, मानों अब ना अइहें ना..

जागरण संवाददाता चंदौली भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक।

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 05:13 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 10:47 PM (IST)
कान्हा सखीयन पर लोभायो, मानों अब ना अइहें ना..
कान्हा सखीयन पर लोभायो, मानों अब ना अइहें ना..

जागरण संवाददाता, चंदौली : भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज की ओर से आयोजित गुरु शिष्य परंपरा प्रशिक्षण योजना के तहत युवाओं को कहरवा लोकगीत, नृत्य का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसका उद्देश्य विलुप्त हो रही परंपराओं को युवाओं के सहारे पीढ़ी गत हस्तांतरण करना है। राष्ट्रीय बिरहा अकादमी, औद्योगिक नगर कटरिया में गुरु की भूमिका अंतरराष्ट्रीय लोक गायक डॉ मन्नू यादव निभा रहे हैं। जुलाई 2020 से आरंभ प्रशिक्षण 30 मई 2021 तक चलेगा। यह प्रशिक्षण निदेशक इंद्रजीत ग्रोवर उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र प्रयागराज की संस्तुति पर दिया जा रहा है। इसमें 18 से 25 साल के युवा अपने लोक संस्कृतियों से तो रूबरू हो ही रहे हैं, विधिवत कहरवा लोकगीत, नृत्य में भी दक्ष हो रहे हैं। प्रशिक्षण में युवा कान्हा सखियन पर पर लोभायो मानों, अब ना अइहें ना, कहवां से आवा तारा केने जइबा राऊर, रही जाता बबुआ दू चार दीन आऊर, खा गइलैं हो, खा गइलैं हो, नंद लाले दही मोर खा गइलें हों आदि कहरवा के बोल पर खूब थिरक रहे हैं। डा. मन्नू ने बताया कि नृत्य गीत परंपरा में कहरवा विशेष जाति के रूप में गाए जाने वाली गायन नृत्य शैली है। शासन का उद्देश्य अब इसे और ऊंचा उठाना है ताकि इस लोक परंपरा को बचाया जा सके। गुरु शिष्य परंपरा में शिष्य कहरवा के अतिरिक्त छंद विधान जैसे कलाधर छंद, दुर्मिल सवैया, सारंगी छंद, शीशा पलट, रसना गहन छंद आदि का भी प्रशिक्षण ले रहे हैं। प्रतिभागियों और संगीतकारों को शासन की ओर से दस माह के लिए मानदेय भी निश्चित किया गया है। कहा कि कहरवा लोकगीत नृत्य अवधी व भोजपुरी दोनों बोलियों में प्रचलित है। इसमें इलाहाबादी, फैजाबादी, बनारसी, बिहार के अंचल में इस लोक धुन की मिठास अलग ही देखने को मिलती है। शासन के इस कार्य से ग्रामीण प्रतिभाओं को लोकगीत के प्रति समर्पण व रुझान तो बढ़ेगा ही विलुप्त हो रही परंपराओं को इन्हीं युवाओं के सहारे पीढ़ी गत हस्तांतरण किया जाना भी सुनिश्चित होगा। प्रशिक्षण में मनीष यादव मऊ, अरविद कुमार चंदौली, मनोहर लाल चंदौली, किशन कुमार, संगतकार पप्पू लाल उर्फ बिजेंद्र कुमार मिर्जापुर ,लाल बहादुर राम, लोक गायक बबलू बावरा व अशोक कुमार के साथ चंचल यादव शामिल हैं।

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शास्त्रीय संगीत के बराबर मिले दर्जा

बिरहा दर्शन पुस्तक के लेखक डा. यादव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मारीशस, भूटान और अमेरिका की ओर से भी लोक गायन के लिए आमंत्रित किए जा चुके हैं। लोक गीतों के संरक्षण व बिरहा जगत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले डॉक्टर यादव ने कहा कि यह जीवंत और नेक कार्य है। लेकिन जब तक लोक संगीत को विश्वविद्यालयों से शास्त्रीय संगीत के बराबर दर्जा नहीं मिलेगा तब तक युवाओं का रुझान नहीं हो पाएगा। क्योंकि इसे रोजी-रोटी से तभी जोड़ा जाएगा जब स्कूली पद्धति में अन्य विषयों की भांति शामिल किया जाए।


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