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बाल विवाह की रोकथाम में सहभागी बने वनवासी..

कलुई सुखिया मगरी भी अब अपनी बेटी को स्कूल भेजने लगी हैं। इनके मन में भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा को खत्म करने का जज्बा पनप रहा। कल तक कम उम्र में बच्चियों का विवाह करने वाला वनवासी परिवार बाल विवाह की रोकथाम में सहभागी बनने लगे हैं। इस कुप्रथा को रोकने की मुहिम में ग्राम्या संस्थान की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इसी का परिणाम है कि वर्ष 201

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Apr 2019 04:08 PM (IST)Updated: Fri, 19 Apr 2019 04:08 PM (IST)
बाल विवाह की रोकथाम में सहभागी बने वनवासी..
बाल विवाह की रोकथाम में सहभागी बने वनवासी..

जासं, चंदौली : कलुई, सुखिया, मगरी भी अब अपनी बेटी को स्कूल भेजने लगी हैं। इनके मन में भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा को खत्म करने का जज्बा पनप रहा। कल तक कम उम्र में बच्चियों का विवाह करने वाला वनवासी परिवार बाल विवाह की रोकथाम में सहभागी बनने लगे हैं। इस कुप्रथा को रोकने की मुहिम में ग्राम्या संस्थान की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। इसी का परिणाम है कि वर्ष 2018 में जिला प्रोबेशन विभाग को बाल विवाह की मात्र एक शिकायत प्राप्त हुई। हालांकि यूनिसेफ की रिपोर्ट ने जनपद में बाल विवाह के आंकड़े को 34 फीसदी तक पहुंचाया है। तुलनात्मक अध्ययन में चंदौली बाल विवाह में होंडुरास देश के समान दर वाला है। लेकिन हाल के वर्षों में बदलाव के लिए साझेदारी ने कुप्रथा पर अंकुश लगाने की भरपूर कोशिश की है।

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अशिक्षा से बाल विवाह को बढ़ावा

बाल विवाह जैसी कुप्रथा के मूल में अशिक्षा सबसे बड़ा कारक है। समृद्ध वर्ग को छोड़ दें तो जनपद में मध्यम व गरीब परिवारों में बालिकाओं की शिक्षा का फीसद आज भी 50 के पार नहीं पहुंच पाया है। सर्व शिक्षा अभियान का ढोल पीटने के बावजूद इन घरों की बालिकाएं स्कूल तक नहीं पहुंच पा रही। वैसे सरकार ने बालिकाओं को मुफ्त शिक्षा का बीड़ा उठाया है। बावजूद इसके दकियानूसी विचारों से ये परिवार निकल नहीं पा रहे हैं। आर्थिक तंगी का हवाला देकर अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने में रुचि ही नहीं लेते है। कम उम्र में बालिकाओं की शादी कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री को सौभाग्य समझते हैं। इसमें सबसे ज्यादा संख्या अनुसूचित जाति व वनवासी परिवारों की है।

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परिजन आ रहे आगे

बाल विवाह कुप्रथा को रोकने के लिए ग्राम्य संस्थान की ओर से नौगढ़ के 30 गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। संस्थान की महिलाएं ग्रामीणों के बीच जाकर उन्हें कुप्रथा के दुष्परिणाम से अवगत करा रहीं। इससे मध्यमवर्गीय परिवारों के साथ वनवासी भी कुप्रथा पर अंकुश को आगे आ रहे हैं। एक वर्ष में कई बालिकाओं के परिजनों ने कुप्रथा का विरोध कर बेटियों को शिक्षित करने में अपना योगदान दिया है।

नीतू सिंह, प्रोजेक्ट मैनेजर, ग्राम्य संस्थान

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वर्जन

बाल विवाह की रोकथाम को प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। 181 पर शिकायत करने को प्रेरित किया जाता है। हाल के वर्षों में लोगों में जागरूकता बढ़ी है। मामला उजागर होने पर त्वरित कार्रवाई की जाती है।

इंद्रावती, जिला प्रोबेशन अधिकारी


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