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21वीं सदी में वनवासियों को पगडंडियों का सहारा

सूबे की सरकार भले ही वनवासियों के विकास का ¨ढढोरा पीट रही लेकिन मूलभूत सुविधाएं आज भी इनसे कोसों दूर हैं। बस्तियों में विकास की किरण ही नहीं पहुंच पाई है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 06:32 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 12:15 AM (IST)
21वीं सदी में वनवासियों को पगडंडियों का सहारा
21वीं सदी में वनवासियों को पगडंडियों का सहारा

जासं, चंदौली : सूबे की सरकार भले ही वनवासियों के विकास का ¨ढढोरा पीट रही लेकिन मूलभूत सुविधाएं आज भी इनसे कोसों दूर हैं। बस्तियों में विकास की किरण ही नहीं पहुंच पाई है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, सम्पर्क मार्ग का घोर अभाव है। 21वीं सदी में भारत के विश्वगुरु बनने की बात हो रही जबकि वनवासियों को आज भी आवागमन को पगडंडियों का सहारा है। यहां बात हो रही शहाबगंज विकास क्षेत्र के नक्सल प्रभावित गांव मुबारकपुर की..जो जिले में विकास की जमीनी तस्वीर की एक बानगी मात्र है।

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बस्तीवासी गर्मी के दिनों में तो धूल भरी पगडंडियों से होकर घर तक पहुंच जाते हैं लेकिन बारिश के दिनों में आवागमन के दौरान लोहे के चने चबाने पड़ते हैं। गांव के अछैबर कोल, सुन्नर, पप्पू, रामअचल आदि ने बताया कि सम्पर्क मार्ग नहीं होने से वैवाहिक समारोह में उन्हें जैसे-तैसे आवागमन करना पड़ता है। यदि परिवार का कोई सदस्य बीमार हो जाए तो चारपाई पर लादकर मुख्य मार्ग तक पहुंचना पड़ता है। मार्ग के निर्माण के बाबत कई बार पंचायत प्रतिनिधि व सक्षम अधिकारियों से शिकायत की गई पर ध्यान नहीं दिया जा रहा। ग्राम प्रधान विनोद ¨सह ने कहा कि कार्य योजना बनाई गई है। धन अवमुक्त होते ही निर्माण करा दिया जाएगा।


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