रोजी-रोजगार नहीं मिला तो लौट जाएंगे मुंबई
रोजी-रोजगार नहीं मिला तो लौट जाएंगे मुंबई
जासं, चंदौली : कोरोना वायरस का संक्रमण तेजी से फैल रहा है। लॉकडाउन के चलते रोजगार ठप हुआ तो प्रवासी मजदूरों का गांव की ओर पलायन बढ़ गया। गांव में लौटे भी तो बेबसी की हालत देख आस-पास के लोगों का व्यवहार बदल गया है। संकट की घड़ी में किसी का साथ नहीं मिल रहा है। परेशानियां तो अनेक, लेकिन लॉकडाउन में रोजी-रोटी मिल जाए तो प्रवासी मजदूरों के लिए मानो मन की मुराद ही पूरी हो जा रही है। राशन कार्ड के जरिए राशन तो आ रहा अन्य कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है। स्थिति यही रही तो काम की तलाश में परदेश लौट जाएंगे।
नौबतपुर निवासी राजेंद्र गुप्ता बताते हैं वह परिवार में चार लोग है। पांच साल पहले पत्नी दो बेटों और एक बहू समेत मुंबई कमाने गए थे। वह सिक्योरिटी गार्ड का काम करते थे। दो बेटे विकास, विशाल बाइक मैकेनिक, महीने में लगभग 30 हजार की कमाई हो जाती थी। जिदगी जीने मुंबई गए थे। शौक के लिए ईएमआइ पर कुछ सामान भी खरीदे, लेकिन अब मुसीबतें बढ़ गई हैं। ईएमआइ चुकाना नामुमकिन हो गया है। मुंबई में सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन होने पर एक माह तक काम शुरू होने की संभावना से वहां रुका रहा, लेकिन पूरी मुंबई में ही लोगों की भागमभाग होने से वह भी परिवार समेत मारे डर गांव आ गए। खाने-कमाने की परेशानी बढ़ गई है। राशन तो मिल जाता है, लेकिन पूरे माह मिले राशन से काम नहीं चलता है। अन्य कोई सरकारी मदद नहीं मिल रही है। फिलहाल घर चलाने के लिए रोजी-रोटी के इंतजाम की चिता खाए जा रही है। सरकार रोजी-रोटी का इंतजाम करती है तो अपने गांव को छोड़कर नहीं जाएंगे। स्थिति यथावत रही तो जिदगी जीने फिर मुंबई या दूसरे प्रांत जाना पड़ेगा। यही जवाब सैयदराजा के बसंतू का था। वह परिवार के साथ घर श्रमिक स्पेशल ट्रेन से लौटे। बोले मुंबई में आटो चलाते थे, दिन में वह रात्रि में बेटा उसी आटो को चलता था। दिन-रात मिलाकर रोजाना के आठ से एक हजार रुपये आ जाते थे। अब स्थिति यह है कि भोजन है, लेकिन काम नहीं। स्थिति सामान्य होने पर वे पुन: लौटेंगे। पहले वह खुद जाएंगे वहां गृहस्थी बसा लेने के बाद परिवार ले जाएंगे।