हिगुतरगढ़ का लाल, ओलंपिक में दिखाएगा कमाल
गांव के लोग भी कायल थे शिवपाल की प्रतिभा के धानापुर- हिगुतरगढ़ के मूल निवासी शिवपाल सिंह के गांव के लोग भी उसके खेल के कायल थे। बचपन में भी भाला फेकता देख हर कोई उसका कायल हो जाता था।उसके जुनून के आगे कड़ी धूप और कड़ाके की ठंड कोई भी मायने नही रखता था । सबसे ज्यादा वह जेवलिग थ्रो में रुचि रखता था । अपने चाचा जगमोहन सिंह को आदर्श मानते हुए उनके उत्साह और प्रशिक्षण में वह हमेशा अभ्यास करता था। उन्ही के मार्गदर्शन में शिवपाल कड़ी मेहनत के चलते आज ये मुकाम हासिल किया ।
जासं, धानापुर (चंदौली) : इंसान के हौसले बुलंद हों और उसमें कुछ कर गुजरने की ललक हो तो ऐसा कोई कार्य नहीं जो वह नहीं कर सकता। जी हां बुलंद हौसले और कुछ कर गुजरने के संकल्प को चरितार्थ कर दिखाया है धानापुर विकास खंड के हिगुतरगढ़ के माटी के लाल शिवपाल सिंह ने। उन्हें टोक्यो ओलंपिक में जेवलिन थ्रो में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है। उनका व उनके परिवार का एक ही सपना है कि वह गोल्ड जीते। पीएसी में तैनात कांस्टेबल रामाश्रय सिंह के ज्येष्ठ पुत्र शिवपाल सिंह ने एक बार फिर क्षेत्र ही नहीं पूरे जनपद का मान बढ़ाने का काम किया है। भाला फेंक खिलाड़ी शिवपाल के टोक्यो ओलंपिक में चयन से उनके गांव और जिले में खुशी की लहर दौड़ गई है।
शिवपाल के पिता रामाश्रय सिंह की मानें तो शिवपाल और छोटे भाई नंद किशोर सिंह का बचपन से ही खेल के प्रति काफी लगाव रहा। शिवपाल के चाचा जगमोहन भी जैवलिन के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी रह चुके हैं जो नेवी में तैनात हैं। 12 वर्षों तक नौकरी में रहते हुए कई पदक जीत चुके हैं। शिवपाल की प्रतिभा को देखते हुए उनके चाचा जगमोहन तेरह साल की अवस्था में ही उन्हें अपने साथ दिल्ली ले गए और जेवलिन थ्रो की ट्रेनिग दिलाई। स्पोर्ट कोटे से ही शिवपाल एयरफोर्स में भर्ती हुए। वर्ष 2018 में एशियन गेम्स, वर्ष 2019 में नेशनल फेडरेशन कप, ओपन नेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप सहित कई पदक बटोरे। वर्ष 2019 में प्रदेश सरकार ने उन्हें लक्ष्मण पुरस्कार से भी सम्मानित किया। दक्षिण अफ्रीका में चल रहे क्वालीफाइंग मुकाबले में 85.47 मीटर भाला फेंककर ओलंपिक का टिकट उन्होंने पक्का कर लिया। पिता पीएसी में कांस्टेबल
शिवपाल सिंह के पिता रामाश्रय सिंह वाराणसी के रामनगर में 36वीं वाहिनी पीएसी में कांस्टेबल के पद पर तैनात हैं। जबकि शिवपाल की मां पूनम सिंह का निधन 5 फरवरी 2013 में हो गया। बावजूद इसके उन्होंने अपने जज्बे को कायम रखा। चाचा ने नेवी में कार्य करते हुए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और समय समय पर उन्हें प्रेरित किया। शिवपाल के छोटे भाई नंदकिशोर सिंह भी पटियाला में नेवी की ट्रेनिग ले रहे हैं। बड़े भाई की तरह वे भी जेवलिन थ्रो की महारत हासिल किए हैं।
साउथ अफ्रीका में ट्रेनिग ले रहे शिवपाल ने जागरण प्रतिनिधि से मैसेंजर पर बातचीत के दौरान बताया क्षेत्र और जनपद का ही नहीं पूरे देश का आशीर्वाद उसके साथ है। अब तो बस लक्ष्य यही है कि ओलंपिक में गोल्ड जीतें। खेल के प्रति दीवानगी के कायल हैं ग्रामीण
हिगुतरगढ़ के मूल निवासी शिवपाल सिंह के गांव के लोग भी उसके खेल के कायल थे। बचपन में भी भाला फेंकता देख हर कोई उसका कायल हो जाता था। उसके जुनून के आगे कड़ी धूप और कड़ाके की ठंड भी कोई मायने नही रखती थी। सबसे ज्यादा वह जेवलिग थ्रो में रुचि रखता था। अपने चाचा जगमोहन सिंह को आदर्श मानते हुए उनके उत्साह और प्रशिक्षण में वह हमेशा अभ्यास करता था। उन्हीं के मार्गदर्शन में शिवपाल ने आज यह मुकाम हासिल किया।