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बांग्लादेश और नेपाल निर्यात की जाने लगी चंदौली की हरी मिर्च, किसानों ने लिखी कामयाबी की इबारत

चंदौली जिले में उपजने वाली हरी मिर्च की गुणवत्‍ता बेहतर होने की वजह से अब यह नेपाल और बांग्‍लादेश को भेजा जा रहा है। यहां के किसान अब निर्यातक की भूमिका में आ चुके हैं और आर्थिक तरक्‍की की राह प्रशस्‍त कर रहे हैं।

By vijay singhEdited By: Abhishek sharmaPublished: Fri, 30 Sep 2022 02:53 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 02:53 PM (IST)
बांग्लादेश और नेपाल निर्यात की जाने लगी चंदौली की हरी मिर्च, किसानों ने लिखी कामयाबी की इबारत
चंदौली की हरी मिर्च अब नेपाल और बांग्‍लादेश भेजी जा रही है।

चंदौली, जागरण संवाददाता। कृषि प्रधान जनपद के अन्नदाता वर्षों से चली आ रही परंपरागत धान व गेहूं की खेती को छोड़ अब बहुआयामी खेती की ओर अग्रसर हो गए हैं। इसी परिणाम है कि चंदौली की हरी मिर्च बांग्लादेश, नेपाल व भूटान में निर्यात की जाने लगी है। इतना ही नहीं प्रति बीघा पचास से साठ हजार की लागत लगा कर अन्नदाता लाखों तो कमा ही रहे हैं, सैकड़ों अकुशल श्रमिकों को रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। इससे किसानों के साथ खेत मजदूरों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो रही है।

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धान के कटोरे में चाहे गंगा के तराई का इलाका चहनियां, धानापुर हो या नौगढ़, शहाबगंज का पर्वतीय इलाका यहां के किसान बड़े पैमाने पर हरी मिर्च की खेती कर रहे हैं। हालांकि, मिर्च की खेती में लागत अधिक आ रही, लेकिन मुनाफा ज्यादा होने से प्रति किसान इसे दस से बीस बीघा तक में उपजा रहे हैं।

सबसे अहम यह कि अपने खेत पर ही उन्हें उपज का उचित मूल्य मिल जा रहा है। बांग्लादेश, भूटान, नेपाल के साथ गैर प्रांत बिहार, बंगाल के व्यापारी किसानों के खेत तक स्वयं पहुंचकर उनकी उपज खरीद रहे हैं। इससे किसानों को मिर्च की खेती के लिए बाजार नहीं ढूढ़ना पड़ रहा।

बोले किसान : नौगढ़ के सोनवार गांव के किसान लाल साहब, सुरेश, अशोक आदि ने बताया कि मिर्च की खेती पूरे छह माह तक चलने वाली है। बताया कि मई के द्वितीय सप्ताह में वीएनआर-6013 प्रजाति की नर्सरी डाली गई थी। जुलाई के प्रथम सप्ताह में इसकी रोपाई की गई। अगस्त माह में फूल के साथ फल आने आरंभ हो गए। वर्तमान में तोड़ाई का कार्य चल रहा है। तोड़ाई के लिए रोज पचास से साठ मजूदरों को लगाया जाता है।

प्रति बीघा खेती की कुल लागत पचास से साठ हजार रुपये आती है। दस बीघा पर प्रति वर्ष पांच लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। यदि रेट बढ़ा तो इससे ज्यादा भी मुनाफा होता है। कहा कि रेट डाउन होने पर हरी मिर्च को सुखाकर लाल मिर्च के रूप में बिक्री की जाती है। वर्तमान में खेत पर ही बांग्लादेश, नेपाल व बिहार के व्यापारी 42 रुपये प्रति किलोग्राम देकर उपज ले जा रहे हैं।

बोले अधिकारी : धान के कटोरे के अन्नदाताओं की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए सहफसली खेती करने को जागरूक किया जा रहा है। मिर्च की खेती के लिए अन्य किसानों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। - ईशा दुहन, जिलाधिकारी।


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