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सोना उगलने वाली मिट्टी की सेहत खराब, पोषक तत्वों में कमी

रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से धान के कटोरे की सोना उगलने वाली मिट्टी दिनोंदिन बंजर होती जा रही है। मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में कमी हो रही है। जीवांश कार्बन के साथ ही जिक व सल्फर की मात्रा न्यूनतम स्तर से नीचे पहुंच चुकी है। मृदा परीक्षण रिपोर्ट के नतीजे इसकी पुष्टि करते हैं। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो खेत में हरी खाद व कंपोस्ट के इस्तेमाल से मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ेगी। इससे अन्नदाताओं को भरपूर उत्पादन भी मिलेगा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 31 Oct 2019 08:10 AM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 08:10 AM (IST)
सोना उगलने वाली मिट्टी की सेहत खराब, पोषक तत्वों में कमी
सोना उगलने वाली मिट्टी की सेहत खराब, पोषक तत्वों में कमी

जागरण संवाददाता, चंदौली : रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुन इस्तेमाल से धान के कटोरे की सोना उगलने वाली मिट्टी दिनोंदिन बंजर होती जा रही है। मृदा में पोषक तत्वों की मात्रा में कमी हो रही है। जीवांश कार्बन के साथ ही जिक व सल्फर की मात्रा न्यूनतम स्तर से नीचे पहुंच चुकी है। मृदा परीक्षण रिपोर्ट के नतीजे इसकी पुष्टि करते हैं। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो खेत में हरी खाद व कंपोस्ट के इस्तेमाल से मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ेगी। इससे अन्नदाताओं को भरपूर उत्पादन भी मिलेगा।

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कृषि प्रधान जनपद में तकरीबन 1.25 लाख हेक्टेयर भूमि में धान, गेहूं, दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती होती है। किसान अधिक उत्पादन की लालच में खेतों में भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। रासायनिक खाद के प्रयोग में साल दर साल वृद्धि हो रही है। डीएपी व यूरिया का खूब इस्तेमाल हो रहा। इससे अन्नदाताओं की अधिक उपज की मंशा तो पूरी हो जा रही, लेकिन मिट्टी में पोषक तत्वों का क्षरण हो रहा। जीवांश कार्बन, सल्फर व जिक की मात्रा न्यूनतम स्तर से भी नीचे पहुंच चुकी है। जिले में जीवांश कार्बन की मात्रा .02 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से भी नीचे पहुंच चुकी है। जबकि .02 से .05 तक न्यूनतम, .05 से .08 तक मध्यम और .08 पीपीएम से अधिक होने पर उत्तम माना जाता है। सल्फर व जिक की भी यही स्थिति है। सल्फर की मात्रा .05 और जिक .06 पीपीएम से कम हो गई है। इसके अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस समेत अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी मध्यम श्रेणी तक पहुंच चुकी है। यदि इसी तरह रासायनिक खाद का प्रयोग होता रहा तो नाइट्रोजन, फास्फोरस की मात्रा भी न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाएगी। कृषि विज्ञानी डा. अभयदीप गौतम ने बताया कि रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुन इस्तेमाल व फसल चक्र परिवर्तित न होने से मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा घट रही है। किसान हरी खाद व कंपोस्ट का इस्तेमाल करने के साथ ही दलहनी व तिलहनी फसलों की खेती करें। इससे मिट्टी की सेहत सुधरेगी। 3.80 लाख मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित

मिट्टी की बिगड़ती सेहत को लेकर किसानों को जागरूक करने के लिए कृषि विभाग सजग है। विभाग की ओर से गत तीन वर्षो में किसानों के खेतों की मिट्टी की जांच कर तीन लाख 80 हजार 107 मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा चुके हैं। शासन की मंशा के अनुरूप अब माडल गांवों का चयन कर सभी किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने प्राप्त कर मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया जा रहा। ''जनपद में 3.80 लाख से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण किया गया है। किसानों को हरी खाद व कंपोस्ट के प्रयोग के लिए जागरूक किया जा रहा है। इससे मिट्टी की सेहत में सुधार होगा। किसानों को भरपूर उत्पादन भी मिलेगा।''

-विजय सिंह, कृषि उपनिदेशक।


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