कालियाचक से चल रहा नकली नोटों का काला कारोबार
यूं तो नकली नोटों की बरामदगी जिले के लिए नई बात नहीं है। ¨चता इस बात की कि तीन लाख से ज्यादा की फेक करेंसी कस्बाई इलाके में जा पहुंची। फेक करेंसी की सबसे बड़ी बरामदगी पीडीडीयू नगर जंक्शन पर वर्ष 2010-11 में 2.6
जागरण संवाददाता, चंदौली : यूं तो नकली नोटों की बरामदगी जिले के लिए नई बात नहीं है। ¨चता इस बात की कि तीन लाख से ज्यादा की फेक करेंसी कस्बाई इलाका चकिया में जा पहुंची। फेक करेंसी की सबसे बड़ी बरामदगी पीडीडीयू नगर जंक्शन पर वर्ष 2010-11 में 2.68 करोड़ रुपये की हुई थी। ¨चतित आरबीआइ के अधिकारी एवं तत्कालीन डीजीपी ने मी¨टग कर रणनीति बनाई थी, जिसके बाद जिला एवं रेलवे पुलिस के दम दिखाने से अंकुश लगा था। हाल के एक पखवाड़े में नकली नोटों की दो बड़ी खेप बरामद होने से सक्रियता का भान हो रहा है।
कालियाचक में सौदागार
अफगानिस्तान में भारतीय फेक करेंसी तैयार की जाती है। पश्चिम बंगाल के कालियाचक में नकली नोटों के सौदागर उसे मंगाकर पूरे देश में पहुंचाते हैं। इसमें रिस्क होने के कारण धोखाधड़ी में बड़े नोट ही ज्यादा इस्तेमाल होते हैं। चकिया से पूर्व गाजीपुर में ज्यादातर दो हजार के नोट मिले थे।
सड़क से बाधा, रेलमार्ग मुफीद
नकली नोटों की खेप सड़क मार्ग नहीं पहुंचाई जाती। इसके पीछे दर्जनों स्थानों पर चे¨कग अहम है। रेल मार्ग मुफीद क्योंकि सुपरफास्ट ट्रेनें गिनती के स्टेशनों पर रुकती हैं। कुछ मिनट के ठहराव में ट्रेनें चेक नहीं हो पाती है।
ये ट्रेनें हैं माध्यम
पीडीडीयू जंक्शन से गुजरने वाली जोधपुर हावड़ा, न्यू फरक्का, फरक्का, अजमेर सियालदह, नार्थईस्ट, ब्रह्मपुत्र मेल, पुरुषोत्तम एक्सप्रेस इत्यादि मुफीद हैं। अधिकांश ट्रेनें सुपरफास्ट होने से गिनती के स्टेशनों पर रुकती हैं। एक-दो ट्रेनें मेल हैं भी तो इतनी भरी रहतीं कि सुरक्षाकर्मी उसमें घुसना नहीं चाहते।
तीन का दस वाला धंधा दो गुने का
अफगानिस्तान के सौदागार तीन का दस लाख देते हैं। इसे प्रांतों में पहुंचाने का रिस्क, खर्च कमाई को दो गुने पर सिमटा देता है। शहरों में जागरूकता बढ़ने से इनका रुख कस्बाई एवं गांवों की ओर बढ़ चला है। वर्ष 2010-11 में पीडीडीयू जंक्शन जीआरपी में इंस्पेक्टर रहने के दौरान 2.67 करोड़ बरामदगी की तो मुखबिरों से मदद ली थी। सौदागरों की रीढ़ तोड़ने को कालियाचक में ही मुखबिर को लगाएं तो काले कारोबारियों की रीढ़ टूट सकती है। हालांकि, डिजिटल जमाने में फेक करेंसी पहले के सापेक्ष कम हुई हैं।'
त्रिपुरारी पांडेय
क्षेत्राधिकारी