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सिर पर अखबार ढोया तो कभी पान की गुमटी रखी और बच्चों को बनाया इंजीनियर, वैज्ञानिक

पान की दुकान चलाई, अखबार बेचे, खुद पढ़े, बच्चों को पढ़ाया, बड़ा बेटा र्जमनी में वैज्ञानिक, मझला पुणे में इंजीनियर, बेटी भी इंजीनियर, छोटा बेटा हॉलीवुड में स्क्रिप्ट राइटर

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 10 Apr 2018 09:14 AM (IST)Updated: Wed, 11 Apr 2018 09:01 AM (IST)
सिर पर अखबार ढोया तो कभी पान की गुमटी रखी और बच्चों को बनाया इंजीनियर, वैज्ञानिक
सिर पर अखबार ढोया तो कभी पान की गुमटी रखी और बच्चों को बनाया इंजीनियर, वैज्ञानिक

चंदौली [जितेंद्र उपाध्याय]। शिक्षा सबसे बड़ा धन है। चंदौली, उत्तरप्रदेश निवासी कृष्णा गुप्ता के सुशिक्षित परिवार से मिल कर इस बात की सुखद अनुभूति होती है। गरीबी से लड़ते हुए कृष्णा को कभी पान की गुमटी में बैठना पड़ा तो कभी अखबार बांटने पड़े। लेकिन पढ़ने को लेकर लगन ऐसी कि ऐसे हालात में भी पढ़ाई जारी रखी और एम.कॉम किया। अपने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में भी कोई समझौता नहीं किया। कभी सिर पर तो कभी साइकिल पर अखबार ढोकर अपने पांचों बच्चों का भविष्य संवारा। उनका बड़ा बेटा आज जर्मनी में वैज्ञानिक है, मझला पुणे में इंजीनियर। बड़ी बेटी भी इंजीनियर है तो छोटी बेटी एमसीए (मास्टर ऑफ कम्प्यूटर एप्लीकेशन) की पढ़ाई कर रही है। वहीं सबसे छोटा बेटा हॉलीवुड फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखता है।

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कृष्णा के सुशिक्षित परिवार को देख जहां हर कोई उनके जीवन को आदर्श जीवन मानता है, वहीं कृष्णा कर्म और भगवान पर विश्वास को तरजीह देते हैं। बात 1969 के आसपास की है। चंदौली के कैली रोड निवासी कृष्णा गुप्ता कक्षा आठ में पढ़ रहे थे। पिता कचहरी में पान और स्टेशनरी की दुकान चलाते थे। पढ़ाई के दौरान दुकान पर बैठना पड़ता। दुकान पर कुछ पत्रकारों का जमावड़ा होता था, इससे उनके मन में पत्रकारिता से जुड़ने की इच्छा हुई।

कुछ दिन पत्रकारों के साथ घूमे और धीरे-धीरे लिखना पढ़ना शुरू कर दिया। उस दौरान के नामचीन अखबार से जुड़े तो शुभचिंतकों के जोर देने पर अखबार की एजेंसी ले ली। कृष्णा बताते हैं, तब रात भर काम करता था और तड़के ही घर आ पाता था। कुछ देर सोने के बाद भोर में ही उठकर पढ़ाई करता और फिर अखबार बेचने के लिए निकल पड़ता। स्कूल से आकर दुकान पर बैठना। बचपन में ही इतनी जिम्मेदारी कंधे पर आ गई। धीरे-धीरे उनकी गरीबी के बादल छंटते गए, एम.कॉम तक शिक्षा भी पूरी की।

जितनी कमाई होती सब पढ़ाई और खान-पान पर खर्च हो जाती। लेकिन नतीजा अच्छा रहा। उनके बड़े बेटे शशि गुप्ता ने परास्नातक पास कर भारतीय विदेश सेवा की परीक्षा पास की। फिर जर्मनी में वैज्ञानिक बन पिता का नाम रोशन किया। छोटे बेटे गोविंद गुप्ता ने इंटर के बाद इंजीनियरिंग की और पूणे में अमेरिकन कंपनी च्वाइन की है। तीसरे नंबर की बेटी मनोरमा ने भी इंटर बाद इंजीनियरिंग की और इंजीनियर लड़के से शादी की। छोटा बेटा अनूप हॉलीवुड में फिल्मों की स्क्रिप्ट तैयार कर नाम कमा रहा है। सबसे छोटी बिटिया रुचि है वह एमसीए कर रही है। पांच बच्चों की इस कदर परवरिश हुई कि हर कोई दंग है।

कृष्णा गुप्ता अब भी अखबार बेचने का धंधा करते हैं। 15 लोगों को रोजगार भी दे रखा है। खुद भी हर रोज लगभग चार सौ रुपये का काम कर लेते हैं और दूसरों को भी कमाने का खूब मौका देते हैं। उनके यहां हर हॉकर दो-ढाई सौ अखबार उठाता है। कृष्णा गुप्ता का कहना है अखबार की बदौलत बहुत कुछ मिला। बच्चे लाइन से लग गए। यह जीवन का सबसे बड़ा आनंद है। अभी हाथ पांव में जोर है इसलिए खुद भी चार-पांच सौ रुपये रोज का काम कर लेता हूं। काम कोई छोटा नहीं होता, व्यक्ति की सोच उसे छोटा बनाती है।


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