वन विभाग की लापरवाही से अभयारण्य में नहीं लग पाए डिजिटल अटैक कैमरे
जागरण संवाददाता चंदौली वन विभाग की उदासीनता के चलते चंद्रप्रभा अभयारण्य में वन्य जीवों की गणन
जागरण संवाददाता, चंदौली : वन विभाग की उदासीनता के चलते चंद्रप्रभा अभयारण्य में वन्य जीवों की गणना के लिए डिजिटल अटैक कैमरा लगाने की योजना आठ वर्ष बाद भी मूर्त रूप नहीं ले पाई। ऐसे में वन्य जीवों की गणना के कार्य पर जहां सवाल खड़ा हो गया है, वहीं योजना को पलीता लग रहा है। वन अधिकारियों का कहना है कि कैमरे तो हैं पर लगाने के लिए उचित स्थान ही नहीं मिल पा रहा है। कैमरे महंगे होने के कारण चोरी का भय है।
प्रदेश के प्राचीन वन्य जीव विहार में शुमार चंद्रप्रभा अभयारण्य 1957 में बना था। यह अभयारण्य नौ हजार छह सौ हेक्टेअर में फैला हुआ है। उस समय प्रदेश सरकार के प्रयास से केंद्र सरकार ने गिर के जंगल से एक नर व मादा बब्बर शेर को वन्य जीव विहार में छोड़ा गया था। 1970 के बाद यहां शेरों की संख्या का अनुमान लगाना कठिन हो गया। कुछ शेर बिहार राज्य के जंगलों में चले गए तो कुछ शिकारियों की गोली के शिकार हो गए। हालांकि वन्य जीव विहार में तेंदुआ, भालू, चिकारा, चीतल चौसिघा, सांभर, लकड़बग्घा, लोमड़ी, जंगली सुअर, शाही बिल्ली, खरगोश, बंदर, लंगूर, नील गाय, हिरन, मोर आदि वन्य जीवों की बहुतायत है।
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वन्य जीवों की संख्या वर्ष 2016 में कराई गई वन्य जीवों की गणना में गु़लदार (तेंदुआ) 3, चिकारा 123 घड़रोज 174, सांभर 101, भालू 104, सुअर 266, बंदर 445, लंगूर 335,भेड़िया 3, लकड़बग्घा 55, लोमड़ी 102, सियार 175, मोर 105 व शाही की संख्या 68 है। -------------
डिजिटल अटैक कैमरा का उद्देश्य
वन्य जीव विहार में पाए जाने वाले वन्य जीवों की गणना विभाग की ओर से प्रत्येक तीन वर्ष पर उनके पद चिन्हों के आधार की जाती रही है। लेकिन पद चिन्हों के आधार पर उनकी वास्तविक स्थिति का आकलन कर पाना कठिन होता है। इसके मद्देनजर वर्ष 2012 के अक्टूबर माह में वन विभाग को वन्य जीवों की गणना के लिए डिजिटल अटैक कैमरे लगाने के लिए पांच कैमरे उपलब्ध कराए गए। साथ ही वन कर्मियों को लखनऊ में कैमरा चलाने के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया ताकि वन्य जीवों की गणना की शत प्रतिशत हकीकत सामने आ सके। इतना ही नहीं इस कैमरे से वन क्षेत्र में अवैध ढंग से विचरण करने वाले व्यक्तियों की पहचान करने की भी योजना रही।
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कहां लगने थे कैमरे
वन्य जीव विहार एरिया में डिजिटल अटैक कैमरा पांच फीट ऊपर वृक्षों में बेल्ट के माध्यम से बांधे जाने थे। ताकि वन्य जीव के सामने से गुजरते ही उसकी तस्वीर कैमरे में कैद हो जाए।
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क्या है डिजिटल अटैक कैमरा
डिजिटल कैमरा अभयारण्य एरिया में लगने के बाद 15 मीटर के दायरे में इससे कोई बच नहीं सकता। यह अत्याधुनिक कैमरा पूरी तरह से वाटर प्रूफ है। घंटा, मिनट, सेकेंड, वर्ष, महीना, तारीख आदि की जानकारी पलक झपकते ही उपलब्ध करा देगा। अहम यह कि कैमरे की बैटरी 18 घंटे बिजली से चार्ज करने के बाद पूरे 30 दिन तक काम करेगी। यही नहीं कैमरे के लेंस के सामने जब कोई नहीं गुजरेगा तो यह साइलेंट मूड में रहेगा। कैमरे के लेंस के सामने से गुजरते ही जीव जंतु या अन्य किसी की फोटो कैद करने में इसे तनिक भी देर नहीं लगेगी। कैमरे का फ्लैश आटोमेटिक है। शाम या अंधेरा होते ही फ्लैश अपने आप काम करना आरंभ कर देगा। एक कैमरे की चिप में 10 हजार फोटो लोड होने के साथ ही कुछ समय की वीडियोग्राफी की भी क्षमता है।
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वर्जन
डिजिटल अटैक कैमरे रखे गए हैं। स्थान चयन नहीं होने व सुरक्षा को देखते हुए नहीं लगाया गया। जल्द कैमरों को लगाने का कार्य कराया जाएगा। वन्य जीवों की गणना हर तीन साल पर होती है, यह भी जल्द शुरू कराई जाएगी।
महावीर कौजलगी, प्रभागीय वनाधिकारी रामनगर