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समय चक्र की भेंट चढ़ गए कुटीर उद्योग

रेशमी ताने-बाने से मसहूर रहा क्षेत्र समय चक्र की भेंट चढ़ से गया। इलाके में कभी हजारों करघा के चलने की खटर पटर की सुनाई पड़ती थी। इससे सैकड़ों परिवारों का भरण-पोषण होता था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 08:05 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 08:05 PM (IST)
समय चक्र की भेंट चढ़ गए कुटीर उद्योग
समय चक्र की भेंट चढ़ गए कुटीर उद्योग

जासं, बबुरी (चंदौली) : रेशमी ताने-बाने से मसहूर रहा क्षेत्र समय चक्र की भेंट चढ़ से गया। इलाके में कभी हजारों करघा के चलने की खटर पटर की सुनाई पड़ती थी। इससे सैकड़ों परिवारों का भरण-पोषण होता था।

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यहां की बुनी हुई साड़ियों के कद्रदान विदेशों में भी थे। लेकिन समय चक्र की मार बदलते परिवेश में ग्राहकों के पसंद व महंगाई ने करघा उद्योग पर ऐसी कुंडली मारी कि यह कारोबार ठप सा हो गया है। इससे कभी मजबूत व टिकाऊ धंधा अब घाटे का सौदा बन गया है। लोगों का कहना है कि समय व मेहनत ज्यादा लगने के कारण अब कारीगर भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। पावर लूम की साड़ियों के चलते रेशमी धागों का दाम बढ़ गया है। ऐसे में इन्हें खरीदने वालों की संख्या भी सिमट गई। कस्बा में कई कारखाने ऐसे थे जहां 500 से ज्यादा कामगार काम किया करते थे। बेहतर ढंग से बनी साड़ियों के खरीदार भी खूब हुआ करते थे। खरीदने के लिए यहां थोक व्यवसायियों का तांता लगा रहता था। रेशम के धागे भी सस्ते दर पर मिल जाते थे। लेकिन साड़ी पर लगने वाले सोने व चांदी के तारों की महंगाई व रेशम के धागों के दामों में बेतहाशा वृद्धि से धंधा पर विपरीत असर पड़ने लगा। नतीजा यह हुआ कि इन साड़ियों पर आर्टिफिशीयल तारों से कढ़ाई होने लगी। जिसे लोग पसंद नहीं करते थे। इससे बेहतर मुनाफा वाले साड़ी उद्योग ने असमय ही दम तोड़ दिया। इसका सबसे ज्यादा असर यहां काम करने वाले मजदूरों पर पड़ा। काम की तलाश में साड़ी व कालीन बुनाई के कारीगर अब दूसरे शहरों में पलायन करे गए।


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