भरत जी का आदर्श अनुकरणीय
भरत जैसा भाई हो तो पारिवारिक समस्याएं जन्म ही नहीं लेंगी। रामचरित मानस में भरत ने आदर्श की भूमिका निभाई है। वर्तमान परिवेश में जहां समाज परिवार बिखर रहा है वहां रामचरित मानस से सीख लेनी होगी।
जासं, इलिया (चंदौली) : भरत जैसा भाई हो तो पारिवारिक समस्याएं जन्म ही नहीं लेंगी। रामचरित मानस में भरत ने आदर्श की भूमिका निभाई है। वर्तमान परिवेश में समाज परिवार बिखर रहा है। इससे जोड़ने को हमे रामचरित मानस से सीख लेनी होगी।
उक्त बातें मानस यज्ञ सेवा समिति खरौझा के तत्वावधान में आयोजित नौ दिवसीय संगीतमय श्री रामकथा के छठी निशा पर बुधवार को नीरजानंद शास्त्री ने कही। उन्होंने कहा कि भरत, जैसे भाई को प्राप्त करने के लिए भगवान राम के आदर्श को अपनाना होगा। जब उन जैसा आदर्श मनुष्य अपने जीवन में अपनाए तो सहज ही आपका भी जीवन धन्य हो जाएगा। मनुष्य के मन मस्तिष्क में सरलता, सहजता आ जाएगी उस दिन आपको सिर्फ भाई ही नहीं आसपास के लोग भी प्रिय लगने लगेंगे। शास्त्री जी ने केवट प्रसंग सुनाते हुए कहा कि गंगा जी का किनारा भक्ति का घाट है, और केवट भगवान का परम भक्त है। किन्तु वह अपनी भक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहता था।केवट ने हठ किया कि आप अपने चरण पखारने के लिए मुझे आदेश दीजिए तो मैं आपको पार करा दूंगा। केवट ने भगवान से धन-दौलत, पद ऐश्वर्य, कोठी-खजाना नहीं मांगा। उसने तो भगवान से उनके चरण धुलने की आज्ञा मांगी। केवट की नाव से गंगा जी को पार करने के बदले राम ने कुछ देने का मन बनाया। उसी समय सीता जी ने भगवान के मन की बात समझकर अपनी मुद्रिका उतारकर उन्हें दे दी। भगवान ने उसे केवट को देने का प्रयास किया किन्तु केवट ने उसे न लेते हुए भगवान के चरण पकड़ लिए। कहा कि जो मनुष्य भगवत कर्मों में सहयोगी न बने ऐसे व्यक्ति के जीवन का कोई औचित्य नहीं है।