चारा महंगा, दूध सस्ता, पशुपालन से हो रहा मोहभंग
छतारी क्षेत्र के अधिकांश गांवों कृषि व पशुपालन के मामले में शुरू से ही अव्वल माने जाते थे ल
छतारी: क्षेत्र के अधिकांश गांवों कृषि व पशुपालन के मामले में शुरू से ही अव्वल माने जाते थे, लेकिन समय-समय पर उचित सलाह व मार्गदर्शन के अभाव में पशुपालन व्यवसाय पर धीरे-धीरे ग्रहण लगता जा रहा है। जिसका कारण साफ है कि अब पशुपालकों को इसमें कोई मुनाफा नजर नहीं आ रहा है। इसके अलावा विभिन्न बीमारियों की चपेट में आने से पशुओं की मौत होने पर पालकों को पशुधन की भारी क्षति उठानी पड़ रही है।
कृषि व पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए शासन स्तर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही है। लेकिन जमीनी धरातल पर इन योजनाओं का लाभ किसानों व पशुपालकों को उस हद तक नहीं मिल पा रहा है जिसकी दरकार है। उन्नतशील किस्म के पशुओं के अभाव में पालक निम्न प्रजाति के गाय, भैंस के अलावा भेड़-बकरियों का पालन करने को मजबूर हैं। इसके चलते उन्हें इस व्यवसाय से बेहतर मुनाफा नहीं हो पाता है। जिसका मुख्य कारण चारा और दाने का महंगा होना भी है। इसके अलावा दूध का लगातार सस्ता होना भी उनकी पशुपालकों की परेशानी को बढ़ा रहा है। मुनाफा नहीं दिखाई देने के कारण छतारी क्षेत्र में लगातार पशुपालन की संख्या में कमी आ रही है। किसान पशुपालन को छोड़कर दूसरी व्यवसाय की तरफ बढ़ रहे हैं। जिससे क्षेत्र में दुग्ध उत्पादन भी लगातार कमी आ रही है। जिसे देखकर लगता है कि आगामी समय में छतारी क्षेत्र के पशुपालक पूरी तरह से पशुपालन को क्षेत्र में छोड़ देंगे। बोले किसान..
चारा महंगा और दूध सस्ता होने के कारण पशुपालन में कोई मुनाफा नहीं मिल रहा है। इसके अलावा सरकार की तरफ से भी कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। साथ ही योजनाओं का लाभ भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है।
योगेंद्र कुमार सिघल, निवासी गांव कमौना।
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पशुओं में होने वाली विभिन्न प्रकार की संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए पशु चिकित्सालय विभाग की तरफ से सिर्फ गिने चुने गांवों में टीकाकरण कर सिर्फ खानापूर्ति कर ली जाती है। इस कारण हर वर्ष भारी संख्या में पशु दम तोड़ देते हैं। लिहाजा पालकों को भारी क्षति उठानी पड़ती है।
-उत्तम चौधरी, निवासी गांव समसपुर।