कुपोषण पर होगा रागी का वार, फसल हो रही तैयार
पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली रागी (मंडुआ) जनपद में पहली बार लहलहा रही है।
बुलंदशहर, जेएनएन : पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाली रागी (मंडुआ) जनपद में पहली बार लहलहा रही है। अभी तक आदिवासियों को पेट भरने वाले मोटे अनाज में शामिल रागी अमीरों के लिए दवा मानी गई है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस फसल के आटे के सेवन से मधुमेह जैसे रोग पर काबू पाया जा सकता है। इसके साथ ही कमजोर हड्डी मजबूत बनाई जा सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि रागी में सर्वाधिक कैल्शियम, पोटेशियम और काब्रोहाइड्रेड पाया जाता है।
जनपद के अग्रणी किसानों में शामिल बीबी नगर क्षेत्र के गांव निसुर्खा निवासी संजीव शर्मा जीरो बजट प्राकृतिक खेती करने में विख्यात हैं। संजीव शर्मा बगैर उर्वरक और रसायनिक प्रयोग के खेती करने वाले बुलंदशहर के एकमात्र किसान हैं। महाराष्ट्र के अमरावती स्थित सुभाष पालेकर फार्मिंग में प्रशिक्षण लेकर उन्होंने प्राकृतिक खेती की ओर रूझान किया। उन्होंने बताया कि मोटा आनाज जैसे गेहूं, ज्वार, बाजारा और चने आदि में रागी को मिलाकर माइग्रेन आटा बनाया जाता है। इन सभी फसलों में सर्वाधिक कैल्शियम, पोटेशियम और काब्रोहाइड्रेड मौजूद है। रागी का आटा खाने से शुगर के मरीजों को काफी फायदा होता है और समय के अनुसार इससे रोग को खत्म भी किया जा सकता है।
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समय के साथ बदला खाने का स्वरूप
बदलती जीवन शैली और आधुनिक बाजार के चलते व्यक्ति उर्वरक और रसायनिक दवाओं से उगाई गई सब्जियों और अनाज खाने को मजबूर है। वैज्ञानिकों का दावा है कि माइग्रेन आटे से शरीर के पोषक तत्वों को मजबूत करने में सहायक होता है और इसमें सर्वाधिक डिमांड कैल्शियम, पोटेशियम और काब्रोहाइड्रेड की होती है जो रागी फसल में भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
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इन्होंने कहा ..
रागी की फसल आधुनिक खेती के चलते लुप्त हो चली थी लेकिन किसान संजीव शर्मा ने इसे उगाकर लोगों के स्वास्थ्य और प्रधानमंत्री की मुहिम को आगे बढ़ाया है। इससे किसान की आय चार गुनी होगी, जलसंरक्षण होगा और मानव शरीर को फायदा होगा।
- आरपी चौधरी, कृषि उपनिदेशक