कभी देती थीं पनाह, अब हो रही फना 'धर्मशाला'
तपती धूप तो कभी अंधेरी रात में राहगीरों को पनाह देने वाली धर्मशालाएं अब फना हो रही हैं। खंडहर में तब्दील हो चुकीं यह धर्मशालाएं पुराने जमाने की यादों को ताजा कर देती हैं जब यह आबाद हुआ करती थीं।
बुलंदशहर, जेएनएन: तपती धूप तो कभी अंधेरी रात में राहगीरों को पनाह देने वाली धर्मशालाएं अब फना हो रही हैं। खंडहर में तब्दील हो चुकीं यह धर्मशालाएं पुराने जमाने की यादों को ताजा कर देती हैं जब यह आबाद हुआ करती थीं। आबाद, अलग-अलग प्रांत, मजहब और बिरादरी के यात्रियों से, जिनमें व्यापारी, श्रद्धालु और घुमक्कड़ सभी शामिल होते थे। लेकिन आज यह खुद अपना वजूद तलाश रही हैं। न यात्री, न चहलपहल और न पहले जैसी रौनक। अब यहां पसरा है तो सिर्फ सन्नाटा।
कभी रहती थी रौनक
पहले पहासू कस्बे के चारों तरफ धर्मशालाएं थीं, यहां दिनरात रौनक रहती थी। यात्री आते और ठहरते थे। इन्हें नगर के प्रतिष्ठित सेठों और जमींदारों ने बनवाया था। मकसद यात्रियों को सहारा देना और उनका थोड़ा कष्ट दूर करना होता था। साथ ही रात गुजारने के लिए एक अदद छत व सुरक्षा मुहैया कराना होता था। पुराने समय में इन धर्मशालाओं में ठहरने वाले राहगीरों को लगभग सभी प्रकार की सुविधाएं दी जाती थीं। जिससे धर्मशाला में आसरा लेने आए अजनबी या मेहमान को कोई परेशानी ना हो। दिन के समय भी पैदल सफर करने वाले राहगीरों की थकान को दूर करने के लिए भी धर्मशाला अहम स्थान होती थीं।
मिटी रौनक, गुजरे दिन
बदलते समय के साथ धर्मशालाओं का वक्त भी बदल गया। इनकी देखभाल न होने से समय के साथ राहगीरों ने यहां आना छोड़ दिया। कस्बे में बरौली मार्ग समेत अन्य चार स्थानों पर बनी धर्मशालाएं आज पूरी तरह से खंडहर में तब्दील हो चुकी है। जब बुजुर्ग राहगीर आज भी इन धर्मशालाओं को देखते है तो उन्हें बीते दौर की याद आ जाती है।
इन्होंने कहा..
पुराने समय में अधिकांश सभी मार्गों पर धर्मशालाएं होती थी। जिनमें ठहर कर राहगीर अपनी थकान मिटाते थे, लेकिन बदलते समय में इन धर्मशालाओं का अस्तित्व भी समाप्त होने लगा है।
---कृष्ण कुमार, निवासी गांव बाद।
पहासू कस्बे के चारों तरफ धर्मशालाएं थी। जिसमें बाहर से आए राहगीरों को रात गुजारने के लिए आसरा मिलता था। पिछले चार दशक में इन धर्मशालाओं की अनदेखी हुई है।
---देवेंद्र सिंह, निवासी गांव वेदरामपुर कनैनी।