नेताजी सुभाष चंद्र की जयंती: कलंदरगढ़ी ने सुनी है नेताजी सुभाष चंद्र की शौर्य गाथा Bulandshahar News
Netaji Subhash Chandras birth anniversary दिल्ली लाल किला स्थित संग्रालय दीर्घा में खुर्जा के गांव कलंदरगढ़ी निवासी कैप्टन अब्बास अली की तस्वीर लगी है।
बुलंदशहर, [अनुज सोलंकी]। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’। इस नारे ने भारत में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला धधका दी थी। सुभाष चंद्र बोस की यह प्रेरणा देश के आजाद होने का भी बहुत बड़ा आधार बनी थी। गांव कलंदरगढ़ी के बाशिंदे नेताजी के शौर्य की गाथा कप्तान अब्बास अली के मुंह से सुनते रहे हैं।
कैप्टन अब्बास अली का जन्म तीन जनवरी 1920 को खुर्जा के गांव कलंदरगढ़ी में हुआ था। कप्तान अब्बास अली सरदार भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित थे। इसके चलते वह पहले नौजवान भारत सभा और फिर स्टूडेंट फेडरेशन के सदस्य बन गए। वर्ष 1939 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट करने के बाद वह दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रितानी सेना में भर्ती हो गए। इसके बाद अब्बास अली ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंदू फौज में शामिल होकर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से दिग्गज भी घबराते थे
तमाम संघर्ष और आजादी की लड़ाई के बाद देश आजाद हुआ। इसके बाद अब्बास भी अपने गांव लौट आए। गांव में ग्रामीणों को वह नेताजी की वीरता के किस्से सुनाया करते थे। वह ग्रामीणों को बताते थे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से दिग्गज भी घबराते थे। सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता इतनी अधिक थी कि भारत के लोग उन्हें ‘नेताजी’ कहकर पुकारते थे। कैप्टन अब्बास अली 11 अक्टूबर 2014 को 94 वर्ष की उम्र में दुनिया रुख्सत हो गए, लेकिन मरते दम तक नेताजी की वीरता की गाथा और उनके साथ व्यतीत किए गए पलों को याद करते रहे।
लाल किला संग्रहालय में लगा है चित्र
सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंदू फौज की याद में दिल्ली के लाल किले की संग्रहालय दीर्घा में नेताजी और उनके अन्य सहयोगियों के चित्र लगाए गए हैं। इस संग्रहालय का शुभारंभ बीते वर्ष जनवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इस दीर्घा में कप्तान अब्बास अली का चित्र भी लगाया गया है।
पूरे गांव को कहानी सुनाते थे चाचा
नेताजी सुभाष चंद्र बोस कि आजाद हिंद सेना के कैप्टन रहे अब्बास अली के भाई अब्दुल सईद खान के पुत्र गुलाम जिलानी ने बताया कि उनके चाचा अब्बास अली पूरे गांव को नेताजी की कहानियां सुनाते थे। वह बताते थे कि नेताजी के साथ उन्होंने कदम से कदम मिलाकर कार्य किया था। नेताजी काफी निडर थे। मरते दम तक चाचा जी की जुबान पर नेताजी सुभाष चंद्र का नाम ही रहा था