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बंजर व्यवस्था में उम्मीद के अंकुर

जिस तरह जन्म देना महत्वपूर्ण दायित्व है उसी तरह परवरिश भी खास फर्ज है। इंसान हो या पेड़-पौधे देखरेख का अभाव उनके जीवन के लिए काल बन सकता है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Aug 2019 11:27 PM (IST)Updated: Fri, 23 Aug 2019 11:27 PM (IST)
बंजर व्यवस्था में उम्मीद के अंकुर
बंजर व्यवस्था में उम्मीद के अंकुर

ब्रजेश शर्मा, सिकंदराबाद :

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जिस तरह जन्म देना महत्वपूर्ण दायित्व है, उसी तरह परवरिश भी खास फर्ज है। इंसान हो या पेड़-पौधे, देखरेख का अभाव उनके जीवन के लिए काल बन सकता है। बाईपास के किनारे पौधे लगवाने वाले सरकारी सिस्टम की लापरवाही से तमाम पौधे नष्ट हो गए। किसानों को नागवार गुजरा तो खुद संरक्षक बनकर उन्हें बच्चों की तरह पालना शुरू कर दिया। मेहनत रंग लाई..। शायद, किसानों में 'पिता' का अक्स महसूस कर नन्हे पौधों के भी अरमान जाग उठे। अब तीन हजार से ज्यादा पौधे जवान होते दिख रहे हैं। पेड़ों को बच्चों की माफिक बढ़ते देख किसान भी फूले नहीं समाते हैं।

सिकंदराबाद से गुजर रहे हाईवे के लिए नगर से दूर साढ़े छह किमी लंबा बाईपास वर्ष 2010 में बनना शुरू हुआ था। दर्जनों किसानों की भूमि का अधिग्रहण हुआ और सड़क किनारे सैकड़ों पेड़ काट दिए गए। तीन वर्ष पूर्व क्लीन यूपी-ग्रीन यूपी अभियान के दौरान प्रशासन ने बाईपास किनारे और सर्विस रोड पर पापड़ी, शीशम, पीपल समेत विभिन्न छायादार प्रजातियों के 10 हजार से अधिक पौधे लगवाए थे। इनके संरक्षण का जिम्मा वन विभाग को दिया गया लेकिन पौधों का रोपण करने के बाद विभाग भूल गया। न तो बचाव के लिए ट्री गार्ड लगवाए और न पानी आदि का इंतजाम किया। लापरवाही के फेर में अधिकांश पौधे नष्ट हो गए। ऐसे हुई पहल

पौधों की दुर्दशा देख क्षेत्र के किसान सामने आए। उन्होंने पौधों की देखरेख और सिंचाई आदि की व्यवस्था की। बाईपास के दोनों ओर छह हजार से अधिक पौधे लगवाए गए थे। जो पौधे खेतों के पास लगे, उनमें से तीन हजार से अधिक दोबारा से विकसित होने लगे हैं। बाईपास के दोनों तरफ दूर तक हरियाली दिखाई देती है। इन गांवों के किसान बने संरक्षक

बाईपास किनारे सिकंदराबाद देहात के गांव मंडावरा, भटपुरा, कांवरा, मनसूखगढ़ी, सिरोंधन, नया गांव आदि के तीन दर्जन से अधिक किसानों के खेत है। इन्हीं किसानों ने पौधों को संरक्षण दिया है। किसान सूरज सैनी, राम सिंह यादव आदि कहते हैं, किसी ने ध्यान नहीं दिया तो उन्होंने खुद नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए पौधों की देखरेख शुरू कर दी। किसान नरेश यादव कहते हैं, यदि किसान पहल नहीं करते तो ये पौधे भी सूख जाते।

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सरकारी जमीन पर लगे पेड़ों की जिम्मेदारी वन विभाग की है। हाईवे किनारे लगे पौधों की देखरेख अगर किसानों ने की है तो यह सराहनीय है। यदि विभागीय स्तर पर लापरवाही हुई है तो जांच करा कार्रवाई की जाएगी।

-गंगा प्रसाद, डीएफओ


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