प्रत्येक जानवर समझता है प्रेम की भाषा
करुणा वह शब्द है जिसे धरती पर रहने वाले सभी व्यक्ति जीव-जंतु महसूस करते हैं।
बुलंदशहर, जेएनएन। करुणा वह शब्द है, जिसे धरती पर रहने वाले सभी व्यक्ति जीव-जंतु महसूस करते हैं। करुणा का दूसरा अर्थ दया से भी लगाया जाता है, लेकिन मेरा यह कहना है कि करुणा व दया में अंतर है। करुणा वह भाव है जो अंतर्मन की संवेदना का परिचय कराता है। मेरा यहां करुणा शब्द से परिचय करवाने का उद्देश्य हमारे संवेदनशील व्यवहार से है। हम आपस में तो अपनी संवेदनाएं व्यक्त कर लेते हैं, लेकिन मैं सोचता हूं उनके बारे में, जो न बोल सकते हैं पर समझते सब कुछ हैं। जानवर जोकि मनुष्य की भाषा में बोल कुछ नहीं सकते, लेकिन समझने में सक्षम होते हैं। जिसका ऋण वह हमारे प्रति वफादारी करके चुकाते हैं। प्रत्येक जानवर प्रेम की भाषा निश्चित तौर पर समझ लेता है। फिर चाहे वो वन में रहने वाला खूंखार जानवर हो या हमारे घरों में पल रहे या सड़कों पर इधर-उधर घूम रहे जानवर हों।
उनके उग्र होने का कोई न कोई कारण जरूर होता है। शेर सबसे उग्र स्वभाव का माना जाता है, लेकिन जब उसका स्वामी खाना खिलाने आता है तो वह सिर झुकाकर स्वागत करता है। दुनिया के कई लोग हैं जो जानवरों से बहुत प्रेम करते हैं। उन्हें जानवरों से कोई अपेक्षा नहीं होती बल्कि स्वत: ही करुणा व वात्सल्य से भरे होते हैं। मैं भी जब इस गहरी संवेदनशीलता के बारे में सोचता हूं तो मुझे अकस्मात ही केरल की गीता वायनाड का स्मरण हो जाता है।
गीता वायनाड बचपन से ही पशु-पक्षियों व जीव-जंतुओं से लगाव रखती थीं। उनका मानना है कि जानवर ही केवल हमसे निस्वार्थ प्रेम करते हैं। कभी-कभी मन के किसी कोने में कुछ खास असहजता तब महसूस करता हूं, जब किसी भी व्यक्ति को जानवरों के प्रति संवेदनहीन पाता हूं। फिर मन में यह भी विचार कौंधता है कि जो बेजुबान हैं वो ही क्यों सब कुछ सहता है? शायद बोल पाता तो कम से कम मनुष्य को उसके निकृष्ट व्यवहार के बारे में जरूर सोचने पर मजबूर कर देता। कई बार प्रकृति भी बड़ी क्रूर दृष्टिगत होती हुई प्रतीत होती है। ऐसा लगता है मानो जानवर बोल नहीं सकते तो वे मृत तुल्य हैं, लेकिन हम ये भूल जाते हैं कि धरती पर रहने वाला प्रत्येक प्राणी प्रेम वातसल्य व करुणा का मोहताज है। मेरी समझ से इन्हें दुत्कारने की अपेक्षा इनसे प्रेम भरा व्यवहार करना चाहिए।
मेनका गांधी ने जानवरों के पक्ष में पेटा नामक संस्था की स्थापना की थी। इस संस्था के माध्यम से वह जानवरों के प्रति दयाभाव दिखाते हुए काम कर रहीं हैं। यह उनके बेहतर इंसान होने का परिचय है। अपनी संस्था के माध्यम से वह जानवरों पर अत्याचार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कराती हैं। पेटा के अलावा भी देश में कई संस्थाएं जानवरों के लिए काम कर रहीं हैं। अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि प्रत्येक व्यक्ति को जानवरों के प्रति क्रूर व्यवहार न करके प्रेम से पेश आना चाहिए। समझना चाहिए कि जानवर भी उसी ईश्वर की रचना है, जिसने मनुष्य को गढ़ा है। 'भरा नहीं भावों से जिसे जीवों से प्यार नहीं, वह नर नहीं पशु तुल्य है, जिसमें भावों की प्यार नहीं।'
- डा. भूपेंद्र कुमार, प्रधानाचार्य, संतोष इंटरनेशनल स्कूल, बुलंदशहर