पहले लाल पगड़ी पहन चौकीदार करा देता था चुनाव
जेएनएन बुलंदशहर संवेदनशील व अतिसंवेदनशील इलाकों में महीनों पहले से पुलिस बल का फ्लैग मार्च तथा प्रत्याशियों की भागदौड़ अब चुनाव के अटूट बंधन से हो गए हैं लेकिन बुजुर्गो को यह अजीब लगता है।
जेएनएन, बुलंदशहर: संवेदनशील व अतिसंवेदनशील इलाकों में महीनों पहले से पुलिस बल का फ्लैग मार्च तथा प्रत्याशियों की भागदौड़ अब चुनाव के अटूट बंधन से हो गए हैं, लेकिन बुजुर्गो को यह अजीब लगता है। उनका कहना है कि उस दौर में इतने तामझाम की जरूरत नहीं होती थी। लाल पगड़ी पहने चौकीदार मतदान करा देता था।
विधानसभा चुनाव के चलते गांवों की चौपालों पर प्रत्याशियों की छवि को लेकर बुजुर्ग हुक्का गुड़गुड़ाते हुए चर्चा करने लगे हैं। गांव पूठा मुबारिकपुर में पूर्व प्रधान किशन पाल सिंह अहाते पर हुक्के की गुड़गुडाहट के बीच चुनावी चर्चा शुरू हो गई। जीवन के 80 बसंत देख चुके पूर्व प्रधान किशनपाल सिंह बोलते है कि भाई चुनाव में तो सब कुछ बदल चुका है। वो जमाना आज भी याद है, जब गांव के हाथ खड़े कराकर चुनाव किया जाता था। आज पुलिस व पीएसी का पुख्ता इंतजाम रहता है, लेकिन फिर भी दंगा फसाद हो जाता है। पुराने दौर में तो लाल पगड़ी वाला चौकीदार अकेला खड़ा रहता था और शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव हो जाता था। बुजुर्गों की बातों को बीच में रोककर कुवंर पाल सिंह बोलते हैं कि मगर अब तो पुलिस, पीएसी से लेकर आरएएफ, सीआरपीएफ की कई कंपनियां मुस्तैद होती है।
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कई -कई बार होता है फ्लैग मार्च
लोस चुनाव, विस चुनाव या चाहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो, अब मतदान से एक माह पहले हो पैरा मिलिट्री फोर्स के साथ पुलिस अधिकारी सुरक्षित माहौल बनाने को फ्लैग मार्च करते हैं।
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बिल्लों को दौड़ लगाते थे बच्चे
एक जमाना था, जब चुनाव प्रचार में बिल्लों का क्रेज रहता था। प्रत्याशी की फोटो व पार्टी के निशान के बिल्ले थोक में छपते थे। प्रत्याशियों के काफिले से लेकर रिक्शा वाला बच्चों को जमकर बिल्ले बांटता था।