अंधविश्वास की बेड़ियों को तोड़ने से ही सार्थक होंगे स्वतंत्रता के मायने
जेएनएन बुलंदशहर देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं लेकिन हमारा समाज आज भी अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों से त्रस्त है। भविष्य की रीढ़ आज के बच्चे यदि जागरूक हो जाएंगे तो देश में अंधविश्वास की परंपराओं को तोड़ा जा सकता है।
जेएनएन, बुलंदशहर:
देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्ष हो चुके हैं लेकिन हमारा समाज आज भी अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों से त्रस्त है। भविष्य की रीढ़ आज के बच्चे यदि जागरूक हो जाएंगे तो देश में अंधविश्वास की परंपराओं को तोड़ा जा सकता है। इससे एक नए आदर्श समाज की स्थापना होगी और सही मायने में स्वतंत्रतापूर्वक जीवन जीने का अधिकार लोगों को मिल सकेगा। इसी आशा के साथ हम सभी को भी समाज को जागरूक कर नई रोशनी करने का प्रयास करना चाहिए। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में प्रकाशित क्षमा शर्मा की रचित कहानी हम तो चले घूमने'' यही संदेश दे रही है। जहां एक और कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद वृंदावन में घूमते हुए रोहन और मीता स्वतंत्रता के महत्व को समझते हैं। वहीं दूसरी ओर वृंदावन में श्वेत वस्त्रधारी कटे बालों वाली वृद्ध विधवाओं को देखकर रूढि़वादी परंपराओं से दुखी होते हैं। यद्यपि महाराष्ट्र की समाज सेविका सावित्रीबाई फुले द्वारा रूढ़ीवादी परंपराओं के विरुद्ध आवाज उठाई गई लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। भविष्य में सफलता मिल सके इसी आशा के साथ समाज में फैली अनगिनत कुरीतियों और रूढि़वादी परंपराओं को दूर करने में समाज को जागरूक करने का प्रयास इस कहानी के माध्यम से किया गया है। स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हमें समाज को विभिन्न स्त्रोतों से जागरूक करते रहना चाहिए। अमृत महोत्सव जैसे कार्यक्रमों का आयोजन कर स्कूल स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताएं करानी चाहिए। इसमें प्रतिभा दिखाने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कृत कर सम्मान देना चाहिए। ताकि उनके देशभक्ति का भाव जाग्रत हो और वे देश की आन बान और शान के लिए सर्वस्व अर्पित करने को आतुर रहे। तभी हमारा देश विश्वगुरु के पद पर आसीन हो सकता है।