चरित्र, शिक्षा और संस्कार ही व्यक्ति को बनाते महान
कहीं बात के असर से कई गुना अधिक प्रभाव सामने वाले के आचरण से पड़ता है। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में विदुषी लेखिका क्षमा शर्मा की कहानी पापा पर हुआ गर्व ईमानदारी के साथ बच्चों में मितव्ययिता पर्यावरण रक्षा एवं संस्कारों का भी पाठ पढ़ाती है। आज बेव•ाह की भौतिक उपभोग की वस्तुओं की फूहड़ होड़ लगी है जिसे पाने के प्रयास में व्यक्ति अपना चरित्र भी ताक पर रख देता है।
जेएनएन, बुलंदशहर। कहीं बात के असर से कई गुना अधिक प्रभाव सामने वाले के आचरण से पड़ता है। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में विदुषी लेखिका क्षमा शर्मा की कहानी ''पापा पर हुआ गर्व'' ईमानदारी के साथ बच्चों में मितव्ययिता, पर्यावरण रक्षा एवं संस्कारों का भी पाठ पढ़ाती है। आज बेव•ाह की भौतिक उपभोग की वस्तुओं की फूहड़ होड़ लगी है, जिसे पाने के प्रयास में व्यक्ति अपना चरित्र भी ताक पर रख देता है। जबकि कहावत है कि ''अगर चरित्र नष्ट हुआ, तो सब कुछ चला गया''। घड़ी तीस रुपये की हो या तीन लाख की समय तो एक सा ही बताती है। यहां इस्कान के प्रणेता प्रभुपाद जी के ये शब्द भी प्रासंगिक हैं कि थोड़ी सी •ामीन और एक गाय एक परिवार के संपूर्ण जीवन यापन को काफी है। सत्य यही है कि प्रकृति आवश्यकता तो समूचे विश्व की पूरी कर सकती है लेकिन लालसा एक व्यक्ति की भी नहीं। पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न डा. कलाम का एक उदाहरण भी प्रासंगिक है, जो उन्होंने अपनी आत्मकथा ''विग्स आफ फायर'' में लिखा है कि जब वह ''इसरो'' में कार्यरत थे तो एक शाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यालय से फोन आया कि कल दिल्ली में आकर मिलें तो उन्हें सबसे अधिक चिता इस बात की हुई कि मेरे पास जूते नहीं हैं,चप्पलें हैं। चप्पलों में प्रधानमंत्री के समक्ष कैसे प्रस्तुत होऊंगा? राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्ति के उपरांत भी उनकी निधि मात्र पुस्तकें ही थीं। यही वास्तविकता है कि व्यक्ति महान तो चरित्र, शिक्षा और संस्कारों से बनता है, धन से नहीं। कहानी किशोरवय छात्र- छात्राओं के लिए पठनीय और ग्रहणीय है।
- डा. हेमा शर्मा, स्याना।