सेवाभाव की मोर्चाबंदी में जीती जिंदगी की जंग
ये वो धरती नहीं जहां इंसान को मजहब के तराजू में तोला जाता है। ये हिदुस्तान है। यहां राम-रहीम का दिल भी एक है और थाली भी। 1971 में पाकिस्तान को शिकस्त देने वाली भारतीय सेना का हिस्सा रहे थे सैनिक गुरदेव सिंह।
बिजनौर, जेएनएन। ये वो धरती नहीं जहां इंसान को मजहब के तराजू में तोला जाता है। ये हिदुस्तान है। यहां राम-रहीम का दिल भी एक है और थाली भी। 1971 में पाकिस्तान को शिकस्त देने वाली भारतीय सेना का हिस्सा रहे थे सैनिक गुरदेव सिंह। जहरखुरानी गिरोह का शिकार बने तो याददाश्त तक चली गई। एक साल प्रेमधाम में उनकी देखरेख हुई। संस्था मिशनरी से संचालित है लेकिन यहां सेवा का पैमाना सिर्फ मानवता है। उस समय गुरदेव सिंह ने सरहद पर हौसले और बहादुरी से फतेह हासिल की लेकिन अब जिंदगी की जंग जीती है दूसरों के सेवाभाव से। बहुत जल्द उन्हें परिवार वालों के पास पहुंचा दिया जाएगा। घटना तकरीबन एक वर्ष पुरानी है। पंजाब के मानसा जिले के गांव किशनगढ़ निवासी पूर्व सैनिक सरदार गुरदेव सिंह अपने पुत्र से खफा होकर गुरुद्वारा आनंदपुर साहिब जाने के लिए घर से निकले थे। ट्रेन में जहरखुरानी गिरोह ने चाय में नशा पिलाकर उन्हें बेहोश कर दिया। नकदी और सामान लूट लिया गया। नजीबाबाद रेलवे स्टेशन से सिख समाज के लोग उन्हें ट्रेन से उतारकर प्रेमधाम आश्रम ले गए।
प्राथमिक उपचार के दौरान चिकित्सकों ने बताया कि तीव्र नशीले पदार्थ के कारण उनके दिमाग पर बुरा असर पड़ा है। एक वर्ष तक शारीरिक, मानसिक कसरत और मेडिकल सेवा के बाद गुरदेव सिंह अब स्वस्थ हैं। वह अपने परिवार से मिलने के लिए तड़प रहे हैं।
यूं तो 82 वर्षीय गुरदेव सिंह का डील-डौल और बात करने का तरीका अब भी फौजी का है, लेकिन कई बार लड़खड़ाती जुबान से अपने बारे में बताते हुए वह बच्चे की तरह रोने लगते हैं। सैनिक की सेवाएं
भारतीय सेना में 1965 में भर्ती हुए। 1982 में सेवानिवृत्त। 1971 में पाकिस्तान से जंग में उन्होंने भारत-पाकिस्तान के खेमकरन बॉर्डर पर 24 पंजाब रेजीमेंट की ओर से मोर्चा संभाला था। इसके अलावा कोलकाता में बैरकपुर बॉर्डर, श्रीनगर, खंडूर, सुंदरवनी, कलाल, राजौरी, बारामूला सेक्टर में भी तैनात रहे।
---------- प्रेमधाम आश्रम में धर्म-जाति से ऊपर उठकर मानवता की सेवा की जाती है। सिस्टर अंसीना, फादर बेनी की सेवा से गुरदेव सिंह को नया जीवन मिला है। बहुत जल्द उन्हें परिवार वालों के पास पहुंचा दिया जाएगा।
- फादर शिबू थामस, आश्रम संचालक