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बीमार हो रहे कुर्बानी के बकरे

बकरीद को अब कुछ ही घंटे बाकी हैं। मुस्लिमों ने परंपरागत कुर्बानी की तैयारी कर ली है लेकिन काफी तादाद में बकरों के बीमार होने से स्थिति गंभीर हो गई है। राजकीय पशु चिकित्सालय पर अधिकांश बकरे तीव्र ज्वर से पीड़ित आ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Aug 2019 09:20 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 09:20 PM (IST)
बीमार हो रहे कुर्बानी के बकरे
बीमार हो रहे कुर्बानी के बकरे

बिजनौर, जेएनएन।

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बकरीद को अब कुछ ही घंटे बाकी हैं। मुस्लिमों ने परंपरागत कुर्बानी की तैयारी कर ली है, लेकिन काफी तादाद में बकरों के बीमार होने से स्थिति गंभीर हो गई है। राजकीय पशु चिकित्सालय पर अधिकांश बकरे तीव्र ज्वर से पीड़ित आ रहे हैं। टीकाकरण एवं दवा सेवन के दो से तीन दिन में हालत में सुधार होने की बात कही जा रही है।

कुछ घंटों बाद बकरीद का त्योहार है। ऐसे में कुर्बानी के लिए हर हाल में बकरों की खरीदारी हर एक मुस्लिम की प्राथमिकता में शामिल है। बाजार के अलावा चौराहों और गलियों में बकरे लेकर घूम रहे लोग बकरे के खरीदारों को अपनी ओर खींच रहे हैं। बकरों को खरीदकर घर ले जाने वालों के लिए लिए परेशानी बढ़ती दिखाई दे रही है। दरअसल घर पर बंधे बकरों के लड़खड़ाकर गिरने, बेसुध होने, खाना-पीना बंद कर देने की शिकायतें सामने आ रही हैं। ऐसे लोग बकरों को लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं। -इनका कहना है

बकरों में तीव्र ज्वर और अफारा मुख्य समस्या बनी है। बकरे राजस्थान के अलग-अलग जनपदों से गाड़ियों में खचाखच भरकर लाए जा रहे हैं। गर्मी के कारण बकरे ट्रांसपोर्ट सिकनेस से पीड़ित हो रहे हैं। समय पर उपचार नहीं मिलने और जलवायु परिवर्तन के कारण हीट स्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं। इसके साथ ही बकरे को तंदरुस्त दिखाकर मोटा मुनाफा कमाने के एवज में इसे बेचने वाले गेहूं या मक्का खिलाने के बाद सोडा या बेसन का घोल पिला रहे हैं। जिससे बकरे का शरीर फूल जाता है और वह रुमिनल एसिडोसिस का शिकार हो जाता है।

-डा.विनोद पाल, उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, नजीबाबाद जानवर को बुखार है, लेकिन वह खा-पी रहा है और चल-फिर रहा है, तो कुर्बानी कर सकते हैं। जानवर की बेसुधी की हालत में कुर्बानी करने से पहले उलेमा से मशविरा लिया जाए। बीमारी फैलने से रोकने के लिए मुस्लिम जानवर के जिस्म से निकलने वाली गंदगी को सड़कों व कूड़े के ढेर पर नहीं डालें, बल्कि उसे सुदूर जगह पर जमीन में दबाएं।

-मौलाना इम्तियाज, नजीबाबाद

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