Move to Jagran APP

160 वर्षो में पहली बार नहीं हुआ रामलीला का मंचन

किरतपुर में श्री झंडा रामलीला स्थल पर मां शाकुंभरी देवी का ध्वज लगभग 160 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। उसके बाद से लगातार अखाड़े तथा रामलीला का आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण रामलीला का मंचन और अखाड़ा नहीं निकाला जा रहा है। किरतपुर की राललीला का दूर-दूर तक नाम है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 08:15 AM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 08:15 AM (IST)
160 वर्षो में पहली बार नहीं हुआ रामलीला का मंचन
160 वर्षो में पहली बार नहीं हुआ रामलीला का मंचन

बिजनौर, जेएनएन। किरतपुर में

loksabha election banner

श्री झंडा रामलीला स्थल पर मां शाकुंभरी देवी का ध्वज लगभग 160 वर्ष पूर्व स्थापित किया गया था। उसके बाद से लगातार अखाड़े तथा रामलीला का आयोजन किया जाता रहा है। इस वर्ष कोरोना महामारी के कारण रामलीला का मंचन और अखाड़ा नहीं निकाला जा रहा है। किरतपुर की राललीला का दूर-दूर तक नाम है।

क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि किरतपुर से कुछ लोग नवरात्र में मां शाकुंभरी देवी पर प्रसाद बिक्री के लिए जाते थे। वर्ष 1858 में प्रसाद विक्रेता दो लोग मां शाकुंभरी देवी सहारनपुर से माता की झंडी लाए थे, जो पंडित छज्जू प्रसाद शर्मा को दी थी। उन्होंने चबूतरा बनवाकर वह झंडी स्थापित करा दी थी। तब से झंडी के नीचे अखाड़ा खेला जाने लगा। फिर शाकुंभरी माता के मंदिर तथा कुएं का निमार्ण कराकर प्रतिदिन आरती की जाने लगी। वर्ष 1860 के बंदोबस्ती के नक्शों में चाह झंडी (कुआं झंडी) आज भी दर्ज है। वहां पर एक चबूतरा बनाकर बांस और बोरियों से स्टेज बनाकर रामलीला का मंचन शुरू किया गया। रामलीला मंचन में रतनलाल, रूपचंद्र, खूबचंद्र एवं सलेकचंद्र आदि ने सहयोग किया। वर्ष 1975 में विशाल पक्के रंगमंच का निर्माण करा दिया गया। पुराने कलाकारों में मंगूलाल शर्मा, भगवान स्वरूप शर्मा, पंडित विष्णुदत्त शुक्ला, भगवत प्रसाद, उमराव सिंह, कोमल प्रकाश गुप्ता, बालेश्वर रस्तौगी, मास्टर सुखवीर गुप्ता, सुभाष चंद्र शर्मा आदि ने रामलीला को उच्चस्तर तक पहुंचाया।

मास्टर सुखवीर गुप्ता का राम का पाठ, जगदीश गिरि का सीता का पाठ, कोमल प्रकाश गुप्ता का परशुराम एवं मेघनाथ का पाठ, बालेश्वर रस्तोगी एवं सुभाष चंद्र शर्मा का लक्ष्मण का पाठ श्रद्धालुओं द्वारा आज भी याद किया जाता है। किरतपुर की रामलीला का दूर-दूर तक नाम था।

वर्ष 2001 तक स्थानीय कलाकारों द्वारा रामलीला खेली जाती थी। फिर वर्ष 2002 में मथुरा से आए कलाकारों द्वारा रामलीला का मंचन किया गया। उसके बाद लगभग दस वर्षो से प्रोजेक्टर पर रामलीला का प्रदर्शन किया जा रहा है। रामलीला कमेटी द्वारा निकाली जाने वाली राम बरात का स्वागत विगत लगभग 70 वर्षों से मनोहरी लाल कश्यप के परिवार द्वारा किया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.