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दीपावली पर महकेगी मिट्टी के बर्तनों की सुगंध

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By JagranEdited By: Published: Mon, 21 Oct 2019 10:51 PM (IST)Updated: Mon, 21 Oct 2019 10:51 PM (IST)
दीपावली पर महकेगी मिट्टी के बर्तनों की सुगंध
दीपावली पर महकेगी मिट्टी के बर्तनों की सुगंध

बिजनौर, जेएनएन। मिट्टी के बर्तन बनाने वाले यानि कुम्हारी कला के एक बार फिर अच्छे दिन आ गए हैं। शासन की मंशा के अनुरूप जिला प्रशासन ने कुम्हारी कला को बढ़ावा देना तो पहले ही शुरू कर दिया था। अब त्योहार के सीजन में मिट्टी के दीये तथा विभिन्न तरह के बर्तनों की मांग एकाएक बढ़ गई है। दीपावली की आहट के साथ ही गांव-गांव बर्तन बनाने के लिए चाक घूमने लगे हैं, वजह एकाएक मिट्टी के बर्तनों की डिमांड बढ़ना भी है। या फिर कहा जाए तो लोग पुरानी परंपराओं की ओर लौट रहे हैं।

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एक जमाना था कि मिट्टी के बर्तनों की बहुत महत्ता थी। गांव ही नहीं शहर में भी मिट्टी के बर्तनों को बनाने के लिए कुम्हार ही नहीं उसका परिवार भी काम में लगा रहता था। लेकिन, आधुनिकता की चकाचौंध में धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों का चलन कम होता चला गया और चाइनीज सामान का क्रेज बढ़ गया। दीपावली जैसे त्योहार पर तमाम लोग रोशनी के लिए बिजली की झालरों, मोमबत्तियों पर ही पूरी तरह निर्भर हो गए। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है कि मिट्टी के दीयों व कुल्हड़ समेत अन्य प्रकार के बर्तनों की डिमांड बढ़ने लगी है। सिर्फ दीपावली ही नहीं बल्कि नवरात्र, दशहरा, करवाचौथ, धनतेरस, गोवर्धन पूजा, भैया दूज जैसे त्योहारों पर भी मिट्टी के दीये, बर्तन उपयोग किए जा रहे हैं। कुम्हारी कला में निपुण गांव पिलाना निवासी राकेश प्रजापति का कहना है कि उनकी तीसरी पीढ़ी इस कार्य में लगी है। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षो में उन्होंने काफी परेशानियां झेलनी पड़ी। त्योहारों के अलावा दुकानों पर ही कुल्हड़ आदि सामान बिकता है। लेकिन, हाल के कुछ सालों में कार्य में बढ़ावा हुआ है। वजह यह भी है कि एक बार फिर मिट्टी के दीयों, कुल्हड़, मटका, करवा आदि की मांग बढ़ी है। यही नहीं अब दीपावली पर पहले ही आर्डर बुक हो गए हैं। वहीं, बर्तन बनाने वाले रामपाल सिंह व राकेश कुमार ने बताया कि वह दीये व अन्य उत्पाद बनाकर गांव ही नहर शहर में भी बेचते हैं।

तेजी से घूम रहे चाक

दीपावली आते ही इन दिनों मिट्टी के बर्तन बनाने वालों के घरों पर सुबह से लेकर शाम तक मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने का काम चल रहा है। एक ओर तेजी से घूमते चाक पर हुनरमंद अंगुलियां मिट्टी को मनचाहा आकार देने में लगी रहती हैं, तो गृहणी तैयार दीये, बर्तन धूप में रखकर सुखाने का काम कर रही है। बच्चे सूखकर आग में पक चुके बर्तनों पर रंग चढ़ा रहे हैं। इस तरह से पूरा परिवार मिलकर मिट्टी के दीये, बर्तन बनाने में एक-दूसरे का सहयोग कर रहा है।


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