जन्म और कर्मस्थली के बच्चों का संवार रहे भविष्य
बिजनौरजेएनएन। ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर हर व्यक्ति उच शिक्षा ग्रहण कर बड़े शहरों की ओर रुख करता है। बड़े शहरों में हर सुख-सुविधा के बीच ही वह अपना जीवन व्यतीत करने की चाह रखता है लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपनी जन्मस्थली को ही अपनी कर्मस्थली बना लेते हैं। यह उदाहरण है धामपुर के अल्हैपुर ब्लाक के गांव मुकरपुरी निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक हरिराज का। वह सेवानिवृत्त होने के बाद गांव के बचों और युवाओं का जीवन संवारने का प्रयास कर रहे हैं।
जन्म और कर्मस्थली के बच्चों का संवार रहे भविष्य
बिजनौर,जेएनएन। ग्रामीण क्षेत्र से निकलकर हर व्यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण कर बड़े शहरों की ओर रुख करता है। बड़े शहरों में हर सुख-सुविधा के बीच ही वह अपना जीवन व्यतीत करने की चाह रखता है, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो अपनी जन्मस्थली को ही अपनी कर्मस्थली बना लेते हैं। यह उदाहरण है धामपुर के अल्हैपुर ब्लाक के गांव मुकरपुरी निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक हरिराज का। वह सेवानिवृत्त होने के बाद गांव के बच्चों और युवाओं का जीवन संवारने का प्रयास कर रहे हैं।
अल्हैपुर ब्लाक के गांव मुकरपुरी में 05 जुलाई 1956 को जन्मे हरिराज सिंह ने अपनी प्राथमिक व जूनियर शिक्षा गांव में ही पूरी की। उस समय में अनेक कठिनाइयों और असुविधाओं से जूझते हुए उन्होंने शिक्षा को ही जीवन में आगे बढ़ने का मूल मंत्र बनाया। जिसके बाद धामपुर में आरएसएम इंटर कालेज से 12वीं के बाद आरएसएम डिग्री कालेज से वर्ष 1976 में जीव विज्ञान में बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। हरिराज सिंह बताते हैं कि उनकी युवावस्था में आज के समय जैसी सुविधाएं नहीं होती थीं। उन्होंने शुरू से ही शिक्षा के महत्व को समझा और इसी क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने पर विचार किया। जिसके बाद 1977 में गढ़वाल से बीएड की डिग्री प्राप्त की। हरिराज सिंह कहते हैं कि बीएड के बाद उनके पास कई बड़े शहरों में नौकरी करने के अवसर थे, लेकिन शुरू से ही उन्होंने अपने गांव वापस लौटने का मन बना लिया था। अपने गांव में बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराना चाहते थे।
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38 वर्षो तक एक ही विद्यालय में सेवा की
हरिराज सिंह के मुताबिक बीएड के बाद वे गांव मुकरपुरी वापस आ गए और कुछ प्रयासों के बाद उन्हें गांव में स्थित जनता इंटर कालेज में विज्ञान के शिक्षक के पद पर वर्ष 1980 में नियुक्ति मिल गई। तब से उन्होंने अपनी जन्म स्थली को ही अपनी कर्म स्थली भी बना लिया और गांव के बच्चों को शिक्षा के मार्ग पर अग्रसर करना शुरू किया। 38 वर्षों तक उन्होंने इसी कालेज में सेवाएं दीं, जिसके बाद मार्च 2017 में सेवानिवृत्त हुए। हरिराज सिंह का पूरा परिवार ही शिक्षा के क्षेत्र में रहा है, उनके तीन बड़े भाई भी अलग-अलग विद्यालयों में शिक्षक पद से रिटायर हुए हैं। उन्होंने अपने बेटे और बेटी को भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ाया। हरिराज सिंह का बेटा रामराज सिंह और बहू अंशुल रानी भी प्राइमरी में अध्यापक हैं। बेटी पारुल राजपूत और दामाद भूपेंद्र कुमार भी जूनियर हाईस्कूल में अध्यापक हैं।
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बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा से कर रहे प्रेरित
सेवानिवृत्त होने के बाद हरिराज सिंह कन्नौज में स्थित राम आश्रम सत्संग के संपर्क में आए। वहीं से उन्हें परोपकार और समाजसेवा की प्रेरणा मिली। जिसके बाद उन्होंने बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा देने का निर्णय किया। जिस विद्यालय में उन्होंने अपना पूरा जीवन लगाया, वहीं पर आज वे बच्चों को निश्शुल्क पढ़ा रहे हैं। कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों को विज्ञान के साथ-साथ छोटे बच्चों को अंग्रेजी भी पढ़ा कर उन्हें जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित कर रहे हैं। इसके अलावा गांव के बच्चों को पढ़ाई पूरी करके बेहतर भविष्य बनाने का मार्ग दर्शन भी दे रहे हैं।