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बगैर हाथ कर रहे चुनौतियों से दो-दो हाथ

कहते हैं मनुष्य का भाग्य उसके हाथ की रेखाओं में नजर आता है लेकिन तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। यूं तो हर किसी को अपनी बाजुओं पर यकीन होता है लेकिन एक नौजवान ऐसा भी है जिसके हाथ ही नहीं हैं मगर उसे अपने हौसले पर विश्वास हैं। मूलरूप से बिजनौर निवासी युवा कैलाशचंद्र चित्रकूट यूनिवर्सिटी से बीसीए क्वालिफाई करने के बाद पूरी तरह आत्मनिर्भर है। एक संस्था में एक वर्ष तक डाटा फीडिग करने के बाद कैलाशचंद्र यूपीएसएससी परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 02 Dec 2020 07:49 PM (IST)Updated: Wed, 02 Dec 2020 07:49 PM (IST)
बगैर हाथ कर रहे चुनौतियों से दो-दो हाथ
बगैर हाथ कर रहे चुनौतियों से दो-दो हाथ

जेएनएन, बिजनौर। कहते हैं मनुष्य का भाग्य उसके हाथ की रेखाओं में नजर आता है, लेकिन तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। यूं तो हर किसी को अपनी बाजुओं पर यकीन होता है, लेकिन एक नौजवान ऐसा भी है, जिसके हाथ ही नहीं हैं, मगर उसे अपने हौसले पर विश्वास हैं। मूलरूप से बिजनौर निवासी युवा कैलाशचंद्र चित्रकूट यूनिवर्सिटी से बीसीए क्वालिफाई करने के बाद पूरी तरह आत्मनिर्भर है। एक संस्था में एक वर्ष तक डाटा फीडिग करने के बाद कैलाशचंद्र यूपीएसएससी परीक्षा की तैयारी कर रहा है।

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बिजनौर के गांव बवनपुरा उर्फ रसूलपुर पित्तनका निवासी 23 वर्षीय कैलाशचंद्र सैनी पुत्र स्वर्गीय राजेश सिंह जन्मजात दोनों हाथों और एक पांव से दिव्यांग है। कैलाशचंद्र के दोनों हाथ कोहनी तक नहीं हैं। एक पांव में सहायक उपकरण लगवाने के साथ आज कैलाश न केवल शारीरिक रूप से अपने पांवों पर खड़ा है, बल्कि उसने अपनी काबलियत के दम पर खुद को आत्मनिर्भर भी बनाया है। कोरोना काल में जहां आर्थिक रूप से खुद को असहज पाते हुए लोगों के माथे पर चिता की लकीरें खिची देखी गई, वहीं कैलाशचंद्र ने दसवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। कैलाश ने खुद को किसी का मोहताज नहीं होने दिया।

कोरोना काल से पहले दिव्यांग कैलाशचंद्र उत्तराखंड के कोटद्वार में करुणा समाज संस्था में कंप्यूटर पर डाटा फीडिग की नौकरी कर छह हजार रुपये मासिक पारिश्रमिक पाता था। कोरोना काल में नौकरी छूटने के बाद इस समय कैलाश के पास 30-35 बच्चे ट्यूशन पढ़ने आते हैं। एमडीएस इंटर कालेज नजीबाबाद से इंटरमीडिएट उत्तीर्ण करने के बाद कैलाश ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग यूनिवर्सिटी चित्रकूट से बीसीए क्वालिफाई किया। कैलाश कहते हैं कि वह जीवनपर्यत किसी पर आश्रित नहीं रहना चाहते। उसका स्वप्न है कि वह जरूरतमंदों की मदद करे, इसलिए खुद को सक्षम बनाने के लिए सरकारी नौकरी की तलाश में है। इसके लिए वह खाली समय में यूपीएसएससी परीक्षा की तैयारी करता है।

कैलाश की खूबियां

कैलाश अपने सभी कार्य स्वयं करता है। स्मार्ट फोन चलाना, कंप्यूटर कीबोर्ड चलाना, रुपये गिनना, भोजन खाना, ड्राइंग बनाना कैलाश के लिए मामूली काम रह गया है। कैलाश कहता है कि उसमें हर वह कार्य करने का जुनून है, जिसे स्वस्थ व्यक्ति कर सकता है।


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