बूंदों ने छेड़ी है सरगम, रुत ने ली अंगड़ाई..
नजीबाबाद में सामाजिक संगठन की महिलाओं के बीच दैनिक जागरण की ओर से कुछ कहता है ये सावन शीर्षक से आनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें उल्लास के साथ महिलाओं ने रचनाएं प्रस्तुत की। इससे लगा कि सावन का शुभागमन करने के लिए महिलाएं न केवल काफी उत्सुक हैं बल्कि सावन गीत गाकर परंपराओं को निभाने की तैयारी भी कर रखी है।
जेएनएन, बिजनौर। नजीबाबाद में सामाजिक संगठन की महिलाओं के बीच दैनिक जागरण की ओर से 'कुछ कहता है ये सावन' शीर्षक से आनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें उल्लास के साथ महिलाओं ने रचनाएं प्रस्तुत की। इससे लगा कि सावन का शुभागमन करने के लिए महिलाएं न केवल काफी उत्सुक हैं, बल्कि सावन गीत गाकर परंपराओं को निभाने की तैयारी भी कर रखी है।
वरिष्ठ कवयित्री निशा अग्रवाल के संचालन में आयोजित काव्य गोष्ठी में ऋचा अग्रवाल ने 'तीज का व्रत है बहुत ही मधुर प्यार का, दिल की श्रद्धा और सच्चे विश्वास का' सुनाया। वर्षा अग्रवाल ने 'सावन का संदेश मिला जब महक उठी पुरवाई, बूंदों ने छेड़ी है सरगम रुत ने ली अंगड़ाई, बाग में पड़ गए झूले तब धानी चुनर लहराई' गीत सुनाकर सबका मन मोह लिया।
नीतू अग्रवाल ने सावन की मधुर फुहारों के संग 'दिल में ये कैसे जागी उमंग, पिया संग झूलूंगी झूला जो आज, निखर जाएगा मेरी मेहंदी का रंग' रचना प्रस्तुत की। भावना अग्रवाल ने हिडोलवा झूलन दे सखियन री, जब ये हिडोलवा ऊपर को जावे, कलेजवा धक धक हो सखियन री, जब ये हिडोलवा नीचे को आवे, चुनरिया सर्र सर्र हो सखियन री' रचना प्रस्तुत की। सोनल अग्रवाल ने 'सावन आता है प्रेम बरसाता है, तीज आता है रिश्तो को अटूट बनाता है' और आरती अग्रवाल ने 'तीज है उमंगों का त्योहार, फूल खिले हैं बागों में, बारिश की है फुहार, दिल से आप सबको हो मुबारक प्यारा ये तीज का त्योहार' रचना सुनाई।
जया अग्रवाल ने 'अमुवा पे झूला डलवाएंगे, घर आए सांवरिया, झूलूंगी मैं वो झुलाएंगे, अमुवा पे झूला डलवाएंगे' रचना प्रस्तुत कर लोगों को भाव-विभोर कर दिया। निशा अग्रवाल ने 'हाथों में चूड़िया खनकी, पैरों में पायल छनकी, माथे पर बिदी दमकी, और सर से चुनरिया सरकी, गजरे ने ली अंगड़ाई, रुत सावन की है आई, ये ढेरों खुशियां लाई, रुत सावन की है आई' और मीनाक्षी अग्रवाल ने 'तीजो की आई बहार हिलमिल झूलो री, बागों में डालो हिडोल सखियां करें किलोल हिलमिल झूलो री, पिया झुलावे, सजनी लजावे, करे सोलह श्रृंगार झूला झूलो री' सुनाया। राधिका अग्रवाल ने 'काश ऐसी बहार हो जाए, रूह तक तीज का त्योहार हो जाए, तुझमें देखूं तो राधिका देखूं और मुझमे गोपाल हो जाए' रचना प्रस्तुत कर सावन के इंतजार की घड़ियों में भावनाएं व्यक्त कीं।