चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक मनोवृत्ति के महत्वपूर्ण अंग
वैज्ञानिक मनोवृत्ति का संबंध तर्कशीलता से है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति के अनुसार वही बात ग्रहण करने योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके। जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किए जा सकें। चर्चा तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक मनोवृत्ति के महत्वपूर्ण अंग हैं। निष्पक्षता मानवता लोकतंत्र समानता और स्वतंत्रता आदि के निर्माण में भी वैज्ञानिक मनोवृत्ति कारगर सिद्ध होती है।
जेएनएन, बिजनौर। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का संबंध तर्कशीलता से है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति के अनुसार वही बात ग्रहण करने योग्य है, जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके। जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किए जा सकें। चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक मनोवृत्ति के महत्वपूर्ण अंग हैं। निष्पक्षता, मानवता, लोकतंत्र, समानता और स्वतंत्रता आदि के निर्माण में भी वैज्ञानिक मनोवृत्ति कारगर सिद्ध होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण मूलत: एक ऐसी मनोवृत्ति है, जिसका मूलाधार किसी भी घटना की पृष्ठभूमि में उपस्थित कार्य-कारण को जानने की प्रवृत्ति है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करता है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शर्त है कि बिना किसी प्रमाण के किसी भी बात पर विश्वास न करना या उपस्थिति प्रमाण के अनुसार ही किसी बात पर विश्वास करना। वैज्ञानिक ²ष्टिकोण से तात्पर्य है कि हम तार्किक रूप से सोचें। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का निर्माण तभी हो सकता है। जब हम अपने अज्ञान को स्वीकार करें और जवाबों की खोज करें।
जनसामान्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना हमारे संविधान के अनुच्छेद-51 के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों में से एक है। अनुच्छेद-51 (द्ध) वैज्ञानिक मनोवृत्ति, उत्सुकता की भावना और सुधार की बात करता है। हमारा संविधान अकेला है, जो वैज्ञानिक मनोवृत्ति का जिक्र करता है। हमारे संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया होगा कि भविष्य में वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान में वृद्धि से वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त चेतना संपन्न समाज का निर्माण हो सकें। आधुनिक समय विज्ञान और प्रौद्योगिकी का है। प्रधानमंत्री ने संसद के उनके पहले संबोधन में देश में व्याप्त अंधश्रद्धा पर गंभीर चिता व्यक्त की थी। असल में आज भी हमारे देश में अंधश्रद्धा और अंधविश्वास विकास की राह में बाधक बनकर खड़े हैं। सूचना क्रांति और वैज्ञानिक युग में जीवन व्यतीत करने के बावजूद हमारे समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग आज भी निर्मूल धारणाओं और अंधविश्वासों से घिरा हुआ है। इनमें अशिक्षित और पढ़े-लिखे दोनों ही प्रकार के लोग शामिल हैं। यह लोग झाड़-फूंक, जादू- टोना और टोटकों से लेकर तरह तरह के भ्रम पर विश्वास रखते हैं। जिसके कारण वैज्ञानिक चेतना से अछूते हैं। मिथ्या एवं अंधविश्वास का परिणाम ही है कि देश में प्रत्येक वर्ष अज्ञानवश बड़ी संख्या में लोग तांत्रिकों एवं झाड़-फूंक का शिकार बनते हैं और जान से हाथ धो बैठते हैं। समाजसेवी डा. नरेंद्र दाभोलकर ने जीवन भर इन्हीं कुरीतियों, पाखंड और अंधविश्वासों का विरोध किया। उन्होंने समाज से अंधश्रद्धा उन्मूलन करने में अपना पूरा जीवन होम कर दिया।
भौतिक शास्त्री डा. विकास कुमार ने अपनी पुस्तक अंधविश्वासों की वैज्ञानिक व्याख्या में समाज में चल रही कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को न मानने का वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किया है। उन्होंने लिखा है कि आज की आधुनिक पीढ़ी वर्षों से चल रही स्वस्थ परंपराओं एवं धार्मिक मान्यताओं को बिना किसी वैज्ञानिक आधार के स्वीकार नहीं करेगी। इसीलिए आज जरूरत है कि उन्हें हमारी परंपराओं एवं मान्यताओं के पीछे वैज्ञानिक आधार समझाया जाएं। तभी हमारी स्वस्थ परंपराएं जीवित रह सकेंगी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और नीति आयोग छात्रों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति विकसित करने के उद्देश्य से विद्यालयों में अटल टिकरिग लैब की स्थापना कर रहा है, ताकि उनमें विज्ञान के प्रति रुचि बढ़े और जिज्ञासु होकर समस्याओं का समाधान तलाश कर सकें। समाज में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि हम शिक्षा का प्रसार कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं। किसी भी घटना या परिघटना के रहस्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करें। उसके बाद ही उस पर विश्वास करें। तभी समाज में वैज्ञानिक चेतना आएगी और समाज आगे बढ़ेगा। इसलिए हम सभी को वैज्ञानिक चेतना को अपनाते हुए उन्नत समाज की रचना के लिए प्रयास करना चाहिए।
-अतुल कुमार गोस्वामी, प्रधानाचार्य, साईं इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल हल्दौर, बिजनौर।