Bijnor News: अमीर हो या गरीब कुपोषण नहीं कर रहा किसी से भेदभाव, सभी के बच्चों को बना रहा अपना शिकार
ऐसा नहीं है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाने वाले सभी बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के होते हैं या संपन्न परिवारों के बच्चों में कुपोषण नहीं पाया जाता है। कुपोषण की एकमात्र वजह है खानपान से बच्चों को पूरे पोषक तत्व न मिलना।
बिजनौर, जागरण संवाददाता। बच्चों को फास्ट फूड या अन्य चटपटे व्यंजन खिलाने से उनका पेट भर रहा है लेकिन इससे उनके पोषण में नाममात्र का भी इजाफा नहीं हो रहा है। आंगनबाड़ी केंद्रों पर आने वाले बच्चों के आंकड़े बताते हैं कि करीब पांच प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
ऐसा नहीं है कि आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाने वाले सभी बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के होते हैं या संपन्न परिवारों के बच्चों में कुपोषण नहीं पाया जाता है। कुपोषण की एकमात्र वजह है खानपान से बच्चों को पूरे पोषक तत्व न मिलना। फास्ट फूड का शौक, दालों और हरी सब्जियों से दूरी बच्चों को कुपोषण का शिकार बना रही है। कुपोषण से बचाव के लिए अभिभावकों को अब दालों और सब्जियों को भी अपनाना ही होगा।
बिजनौर से एक रिपोर्ट- यह हैं कुपोषण के आंकड़े
परियोजना- कुल बच्चे - कुपोषित बच्चे
अफजलगढ़ - 21,905 - 1,076
स्योहारा - 14,174 - 793
धामपुर - 20,675 - 937
नहटौर - 16,139 - 765
जलीलपुर - 23,780 - 1,311
हल्दौर - 8,510 - 357
झालू -11,899 - 489
देवमल - 22,687 -1,007
शहर - 6,959 -274
नूरपुर - 21,155 -1,042
कोतवाली - 31,039 1,546
किरतपुर - 14,955 - 733
नजीबाबाद - 31,841 - 1,465
योग - 2,44,999 - 11,179
नोट: ये संख्या आंगनबाड़ी केंद्रों पर आने वाले बच्चों की है। कुल आंगनबाड़ी केंद्र- 3,179 कुल बच्चे- 2,44,999 कुपोषित बच्चे-11,179
ये है कुपोषण की मार
- 31 प्रतिशत बच्चों को ही जन्म के एक घंटे के अंदर मां का दूध मिलता है।
- 36 प्रतिशत बच्चों की लंबाई उनकी आयु के अनुपात से कम है।
- नौ प्रतिशत से अधिक बच्चों का वजन उनकी आयु से कम है।
- छह माह से पांच साल तक के 60 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है।
कुपोषण के खिलाफ ये हैं ब्रह्मास्त्र
- हरी और पीली सब्जी।
- मौसमी फल।
- दूध व उसके उत्पाद।
- मीट और अंडे।
- मक्खन और घी।
अधिकारी की राय
जिला कार्यक्रम अधिकारी नागेंद्र मिश्र बताते हैं कि पौष्टिक आहार ही विकल्प कुपोषण को केवल संतुलित पौष्टिक आहार से ही खत्म किया जा सकता है। इसके बारे में अभिभावकों को लगातार जागरुक किया जा रहा है। जागरूकता अभियान के सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।