..तो पुश्तैनी कला फिर जी उठेगी
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किरतपुर (बिजनौर) : गांधी आश्रम से खादी उत्पाद की बुनाई बंद होने से ग्राम मेमन सादात के सैकड़ों बुनकर परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है। कारीगरों को परिवार का पेट भरने के लिए कारीगरी छोड़कर मजदूरी करनी पड़ रही है। नजीबाबाद का कंबल कारखाना जल्द शुरू होने की उम्मीद की किरण नजर आने से बुनकर परिवारों में खुशी का माहौल है।
किरतपुर, नजीबाबाद तथा रायपुर के गांधी आश्रम द्वारा गांव मेमन सादात के बुनकरों को कच्चा सूत देकर मजदूरी पर खादी उत्पाद, दुतई, खेस आदि कपड़ा बुनवाया जाता था। मेमन सादात की बनी खादी तथा कालीन बहुत पसंद किए जाते थे। गांव मेमन सादात में रजा अंसारी, शब्बीर अंसारी, नजीर अंसारी, इब्राहीम तथा इनाम अली अंसारी के परिवारों समेत करीब सौ परिवार कई दशकों से खड्डी पर खादी, दुतई तथा खेस आदि बुनकर अपना परिवार पाल रहे थे। विगत 15 वर्षों से गांधी आश्रम द्वारा कारीगरों से कपड़ा बुनवाना बंद कर दिया गया। पुराने कारीगर निसार अंसारी कहते हैं कि बढ़ती महंगाई को देखते हुए गांधी आश्रम प्रबंधन वर्ग से मजदूरी बढ़ाने के लिए कहा गया था, लेकिन मजदूरी नही बढ़ाई, साथ ही एक माह बाद ही सब कारीगरों का हिसाब कर काम बंद कर दिया। जिससे सैकड़ों परिवारो के सामने रोजी रोटी का संकट गहरा गया। -आर्थिक चुनौतियों ने बदल डाली राह
हथकरघे की कला के माहिरों को काम मिलना बंद होने के बाद उनके परिवारों पर आर्थिक संकटों के बादल मंडराने लगे, लेकिन इन परिवारों के लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और अन्य कामकाज में नए सिरे से जुट गए। 80 वर्षीय वयोवृद्ध रशीद अंसारी, 75 वर्षीय गुलाम असगर, कमर अब्बास अंसारी सहित कई लोग सब्जी बेचकर, यासीन, कासिम आदि फल बेचकर, निसार, अमजद आदि बाग की रखवाली कर और ज्यादातर बुनकर मजदूरी कर अपना परिवार पाल रहे हैं। कुछ बुनकर परिवार ऐसे हैं, जिन्हें काम की तलाश में बाहर जाना पड़ा। -धुंधली आंखों में चमकी उम्मीद की किरण
नजीबाबाद में बंद पड़ा कंबल कारखाना शुरू होने की उम्मीद से बुनकर परिवारों के चेहरे पर खुशी लौट आई है। बुनकर गुलाम रजा अंसारी बताते हैं कि कंबल कारखाने पर कारीगरों को काम दिया जाएगा, तो पुश्तैनी कला फिर जी उठेगी। बुनकर नासिर, शाकिर, सगीर, नसीर, इनाम अली कहते हैं कि महंगाई को ध्यान में रखते हुए उन्हें मजदूरी मिलेगी तो कारखाने में काम करने को तैयार हैं। वरिष्ठ कारीगर गुलाम पंजियतन कहते हैं कि सरकार कच्चा माल दे, तो मजदूरी पर कपड़ा तैयार कर सकते हैं।
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