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इंसानियत के प्रहार से तोड़ी मजहब की दीवार

भारतीय संस्कृति व सभ्यता में आपसी एकता व सौहार्द की डोर इतनी मजबूत है कि जिसे तोड़ पाना किसी के लिए आसान नहीं है। इसकी बानगी पेश होती है इस्लामिक कैलेंडर के नव वर्ष व पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब (सल्ल.) के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाई जाने वाले माहे मोहर्रम में।

By JagranEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 06:33 PM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 06:33 PM (IST)
इंसानियत के प्रहार से तोड़ी मजहब की दीवार
इंसानियत के प्रहार से तोड़ी मजहब की दीवार

जागरण संवाददाता, ऊंज/गोपीगंज (भदोही) : भारतीय संस्कृति व सभ्यता में आपसी एकता व सौहार्द की डोर इतनी मजबूत है कि जिसे तोड़ पाना किसी के लिए आसान नहीं है। इसकी बानगी पेश होती है इस्लामिक कैलेंडर के नव वर्ष व पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब (सल्ल.) के नवासे इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाई जाने वाले माहे मोहर्रम में। भले ही धर्म व मजहब के नाम पर लोगों को तोड़ने की तमाम कोशिशें की जा रही हों, लेकिन मजहब रूपी दीवार पर करारा प्रहार करते दिखते हैं। हिदू परिवार ताजियों में न रंग भरते नजर आते हैं बल्कि ताजिया निकालकर मातम करते हैं। मुहर्रम का चांद दिखते ही उनका पूरा कुनबा न सिर्फ ताजिये के निर्माण में जुट जाता है बल्कि नवीं मुहर्रम की रात ताजिए को चौक पर बिठाने के साथ दसवीं तारीख को जुलूस निकालकर कर्बला तक पहुंचाकर ठंडा किया जाता है। डीघ ब्लाक के कोइरौना बाजार में क्षत्रिय तो प्रमुख व्यवसायिक नगर गोपीगंज में चौहान परिवार की ओर से ताजिया निकाला जाता है।

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परदादा की शुरू परंपरा का कर रहे निर्वाह

- धर्म व मजहब की दीवार से अलग हटकर कोइरौना बाजार निवासी संजय सिंह का परिवार पांच पीढि़यों से मोहर्रम में ताजिया निकालने की परंपरा का निर्वाह करते चला आ रहा है। मुहर्रम का चांद दिखते ही उनका पूरा कुनबा न सिर्फ ताजिये के निर्माण में जुट जाता है बल्कि नवीं मुहर्रम की रात ताजिए को चौक पर बिठाने के साथ दसवीं तारीख को जुलूस निकालकर कर्बला तक पहुंचाकर ठंडा किया जाता है। संजय सिंह बताते हैं कि उनके परदादा के दादा ठाकुर हरिमोहन सिंह का वंश नहीं आगे नहीं बढ़ रहा था। मुहर्रम के दिन निकले ताजिया जुलूस को देख उत्सुकता वश उन्होंने पूछ लिया कि क्या है। उन्हें बताया गया कि यह इमाम हुसैन की याद में मनाया जा रहा है। जो भी पूरी आस्था के साथ इमाम हुसैन से कोई दरख्वास्त करता है तो उसकी मन्नत अवश्य पूरी होती है। उसी समय उनके द्वारा मांगी गई मन्नत पर जब पुत्र रत्न के रूप में जोखू सिंह की प्राप्ति हुई तो उन्होंने ताजिया निकालना शुरू कर दिया। इसके बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके पुत्र ठाकुर रणधीर सिंह, ठाकुर राजेंद्र बहादुर सिंह द्वारा इस परंपरा का निर्वाह होता रहा है।

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चौहान परिवार का ताजिया बनता है आकर्षण का केंद्र

- गोपीगंज के फूलबाग में चौहान परिवार पूरे अकीदत और एहतराम के साथ ताजियादारी करते चला आ रहा है। इनका ताजिया नगर वासियों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता है। स्व. नन्हई चौहान के परिवार के लोग बस्ती के लोगों के साथ मिलकर इमाम चौक पर ताजिया रखते है। परिवार सदस्य लीलावती देवी ने बताया कि उनके पूर्वजों द्वारा वर्षों पूर्व से ताजियादारी शुरू की गई थी। पहले वह लोग नोनियान गली में रहते थे। अब फूलबाग में बस गए हैं। मोहर्रम का माह शुरू होते ही इमाम चौक की रंगाई पोताई कराकर ताजिया के निर्माण में जुट जाते हैं। नौवीं की रात इमाम चौक पर ताजिया बिठाने के साथ दसवीं को कर्बला तक पहुंचाकर दफ्न किया जाता है। प्रदीप कुमार, रोहित, राजू, अच्छेलाल आदि ताजिया तैयार करने में जुटे रहे। इसी तरह नगर के ही लाई बाजार स्थित इमाम चौक पर रखे जाने वाले ताजिया के निर्माण से लेकर कर्बला तक पहुंचाने में उक्त मोहाल निवासी भरत जायसवाल का पूरी कुनबा पूरी शिद्दत के साथ लगा रहता है।


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