वैश्विक मंदी व प्रोत्साहन का अभाव, कालीनों का नहीं रहा भाव
विश्वव्यापी वैश्विक मंदी सहित कई अन्य कारणों से राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय कालीन मेलों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। जर्मनी में आयोजित होने वाला डोमोटेक्स हो अथवा दिल्ली-वाराणसी में आयोजित इंडिया कारपेट एक्सपो। महज आयातक-निर्यातक मिलन का मंच साबित हो रहे हैं। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) मेला सम्पन्न होने के बाद करोड़ों के व्यवसाय सृजन का दावा करती है लेकिन वास्तविकता के धरातल पर स्थिति भिन्न है। यही कारण है कि उद्यमी सरकार की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं।
जागरण संवाददाता, भदोही : विश्वव्यापी वैश्विक मंदी समेत अन्य दुश्वारियों ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कालीन मेलों की अपेक्षित सफलता की राह रोक दी है। जर्मनी में आयोजित होने वाला डोमोटेक्स हो अथवा दिल्ली व वाराणसी में लगने वाला इंडिया कारपेट एक्सपो। महज आयातक-निर्यातक मिलन का मंच साबित हो रहे हैं। कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) मेला सम्पन्न होने के बाद करोड़ों के व्यवसाय सृजन का दावा तो करती है लेकिन वास्तविकता के धरातल पर स्थिति पूरी तरह इतर है। उद्यमी सरकार से राहत की उम्मीद लगाए हुए हैं।
वर्ष 1990 के बाद कालीन उद्योग का ढलान शुरू हुआ। वर्ष 2000 के बाद मंदी के ऐसे दलदल में फंसा की उबरने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है। परिक्षेत्र के कुछ निर्यातकों को छोड़ दिया जाए तो अधिकतर के पास काम का संकट है। गत माह मार्च में दिल्ली में आयोजित चार दिवसीय इंडिया कारपेट एक्सपो भी अधिक गुल नहीं खिला सका। मेले से लौटे अधिकतर निर्यातकों ने निराशा जताई थी। दूसरे प्रांतों के मजदूर, बुनकर पहले ही पलायन कर चुके थे जबकि रोजी रोटी की तलाश में स्थानीय लोग भी महानगरों की ओर कूच करने को विवश हैं। लोगों का कहना है कि कालीन व्यवसाय की यही हालत रही तो भदोही-मीरजापुर-परिक्षेत्र इतिहास बनकर रह जाएगा। कारोबार में वैश्विक मंदी बड़ा कारण
- विश्व बाजार में वैश्विक मंदी भी कालीन उद्योग के बदहाली में प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इसके अलावा मशीन मेड कालीनों का बढ़ा प्रचलन, विदेशी ग्राहकों की पंसद, चाइना जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा, बुनकर संकट, परिक्षेत्र में ढांचागत सुविधाओं का अभाव, सरकारों द्वारा प्रोत्साहन की कमी उद्योग की बदहाली के लिए घातक साबित हुए। नोटबंदी व जीएसटी ने डाला असर
मंदी की मार झेल रहे कालीन उद्योग को दो वर्ष में दो बड़े झटकों का सामना करना पड़ा। नोटबंदी ने जहां कालीन उद्यमियों की कमर तोड़ दी। लोग इससे अभी उबर भी नहीं सके थे कि जीएसटी ने झटका दिया। कालीन उद्योग ने जोरदार विरोध दर्ज कराया था। सरकार से लेकर मंत्रालय तक आवाज बुलंद की गई। नतीजे में जाब वर्क पर लगे जीएसटी को कम किया गया जबकि जीएसटी रिफंड अब भी निर्यातकों के लिए गले की हड्डी साबित हो रहा है। इसे हासिल करने के लिए उद्यमी विभाग के चक्कर काट रहे हैं।