भदोही जिले में गंगा की कटान से कई गांवों का अस्तित्व खतरे में, बारिश के बाद से ही अटक जाती है सांस
गंगा में बाढ़ की वजह से लगातार तटवर्ती इलाकों में भदोही जिले में कटान का दौर भी चल रहा है। गंगा में बाढ़ की वजह से होने वाली कटान की वजह से कई गांवों का अस्तित्व भी खतरे में आ गया है।
भदोही, जागरण संवाददाता। बारिश का मौसम आने के साथ ही शुरू हो जाता है किसी भी विषम परिस्थिति से निबटने की तैयारी का खेल। संभावित बाढ़ से बचाव व लेकर कटान रोकने तक को लेकर तमाम दावे होते हैं इरादे भी जताए जाते हैं लेकिन रात गई बात गई की तर्ज पर बारिश खत्म ही सब कुछ खत्म हो जाता है। अधिकारियों के लेकर जनप्रतिनिधियों के स्मृति पटल से यह समस्या इस कदर विस्मृत हो जाता है मानों कोई सरोकार ही न हो।
जबकि जिले के डीघ ब्लाक क्षेत्र के गंगा तटवर्ती गांवों में कटान की समस्या से प्रतिवर्ष सैकड़ों बीघे भूमि गंगा की गोद में समाहित हो जाती है। ऐसे में कैसे रुके कटान इसको लेकर लोगों की जान हमेशा सांसत में पड़ी रहती है।
डीघ ब्लाक के कोनिया क्षेत्र के गंगा तटवर्ती छेंछुआ, भुर्रा, धनतुलसी, इटहरा, कलिक मवैया से लगायत डीघ सहित करीब एक दर्जन गांव में गंगा कटान एक विकट समस्या बन चुकी है। प्रति वर्ष गंगा में पानी बढ़ते ही शुरू हो जाने वाले कटान के चलते किसानों की सैकड़ों बीघे उपजाऊ भूमि गंगा में समा जाती है।
किसान भूमिहीन होते जा रहे हैं। जीविकोपार्जन का जरिया बने कीमती भूमि को गंगा में जाते देख किसानों के आंख से खून के आंसू बहने लगते हैं लेकिन कहीं से उन्हें कोई ऐसा भगीरथ नहीं दिखाई पड़ रहा है जो उनकी इस समस्या के निवारण कर सके। वैसे कटान रोकने की योजनाएं बनती भी हैं लेकिन आज तक एक भी योजना परवान नहीं चढ़ सकी। छेछुआ के किसान अमर बहादुर सिंह का कहना रहा कि अब तक गांव की करीब एक हजार बीघे भूमि गंगा में समा चुकी है। बावजूद इसके न तो अधिकारी गंभीर हैं न तो जनप्रतिनिधि। गजाधरपुर के दिलीप सिंह ने बताया कि गांव की प्रति वर्ष कई बीघे भूमि कटकर गंगा में चली जाती है किंतु कहीं से कटान रोकने की कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
समाप्त हो चुका है हरिहरपुर का अस्तित्व : गंगा कटान का दर्द यूं ही नहीं लोगों को सता रहा है। कटान की समस्या से होने वाले नुकसान पर नजर दौड़ाई जाय तो जहां एक दर्जन गांवों की हजारों बीघे भूमि गंगा में समाहित हो चुकी है तो वहीं हरा-भरा पूरा हरिहरपुर गांव आज इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है। यानी करीब एक हजार बीघा क्षेत्र में फैला पूरा गांव गंगा में समाहित हो चुका है। जिसका अस्तित्व ही समाप्त हो चुका है। इसी तरह छेछुआ की करीब एक हजार बीघे भूमि कटान की भेंट चढ़ चुकी है।