दृढ़ इच्छाशक्ति व सच्ची लगन ही सफलता का मुख्य आधार
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : प्रत्येक असफलता के पीछे ही सफलता छिपी होती है। बस उसे हासिल करने
जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : प्रत्येक असफलता के पीछे ही सफलता छिपी होती है। बस उसे हासिल करने के लिए जरूरत होती है तो वह है दृढ़ इच्छाशक्ति व सच्ची लगन। तमाम मुश्किलें अपने आप दूर होती चली जाएगी। साथ ही सफलता कदम चूमती दिखाई पड़ेगी। कैरियर के शुरुआती दौर में ही मात्र फ्लैट फुट (सपाट पैर) के कारण जिमनास्ट की दुनिया से खारिज कर दी गई दीपा करमाकर ने इसे स्वीकार नहीं किया। अपने लक्ष्य को हासिल करने को लेकर उनकी लगन ही थी कि तमाम झंझावातों के सहते-झेलते हुए भी वह विश्व स्तर की प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट बनी। युवा खिलाड़ियों के लिए वह निश्चित तौर पर प्रेरणास्त्रोत साबित होंगी।
काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर के दर्शनशास्त्र विभाग के प्रवक्ता डा. अवधेश आर्य ने कहा कि आज तमाम युवा खिलाड़ी मात्र इस उधेड़बुन में कि सफलता मिलेगी या नहीं, आगे क्या होगा आदि को देखते हुए प्रतिभा होते हुए भी मात खा जाते हैं। ऐसे युवाओं के लिए जिमनास्ट दीपा करमाकर निश्चित ही प्रेरणास्त्रोत बन सकती हैं। जिस तरह उन्होंने मुश्किलों का सामना कर कामनवेल्थ व एशियाई गेम्स में सफलता का झंडा गाड़ा, इसे देखकर कहा जा सकता है कि यदि लक्ष्य तय कर कड़ी मेहनत की जाय तो कोई भी मंजिल हासिल करना मुश्किल नहीं है। इसी तरह समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डा. घनश्याम मिश्र ने कहा कि त्रिपुरा, अगरतला में एक साधारण दुलार करमाकर के यहां जन्म लेने वाली दीपा को फ्लैट फुट (सपाट पैर) के कारण उन्हें खेल जगत से रिजेक्ट कर दिया गया। लेकिन बचपन से दीपा के आंखों में जिमनास्ट बनने का जो सपना पल रहा था उसे कड़ी मेहनत और लगन से पूरा करने में वे लग गईं। अंतत: उसमें सफल भी हुई। इससे यह कहा जा सकता है कि सफलता हासिल करना कोई मुश्किल कार्य नहीं है। सोच व इरादे मजबूत होने चाहिए। कानरा महाविद्यालय दर्शन शास्त्र के विभागाध्यक्ष डा. किशोरीलाल पांडेय ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में मिली असफलता से कभी घबराना नहीं चाहिए। बल्कि उसे यह सोचते हुए स्वीकार करना चाहिए कि बस आगे सफलता की मंजिल इंतजार कर रही है। खेल जगत में अपने प्रदर्शन के जरिए सनसनाहट पैदा कर देने वाली भारतीय जिमनास्ट दीपा करमाकर ने अपने बुलंद हौसले व ठोस इरादे के जरिए इसे साबित भी कर दिखाया है। इसी तरह कानरा महाविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डा. जेएस नौलखा ने कहा कि हाल के वर्षों में आयोजित कामनवेल्थ गेम और एशियाई गेम्स में देश के छोटे शहरों की महिला खिलाड़ियों ने अपने प्रदर्शन से दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। इन्हीं खिलाड़ियों में कलात्मक जिमनास्ट दीपा करमाकर भी हैं।
महज छह वर्ष की उम्र से ही जिमनास्ट बनने का सपना पाले दीपा को फ्लैट फुट (सपाट पैर) के कारण उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया। लेकिन बचपन से दीपा के आंखों में जिमनास्ट बनने का जो सपना पल रहा था उसे कड़ी मेहनत और लगन से पूरा करने में वे लगी रही। अंतत: वह सफल रहीं। वर्ष 2018 एफआईजी आर्टिस्टिक जिमनास्ट वर्ल्ड चैलेंज कप टर्की में गोल्ड मेडल पाने वाली वह पहली महिला जिमनास्ट बन गई। उनके संघर्षों से उभरते युवा खिलाड़ियों को प्रेरणा लेनी चाहिए। लक्ष्य तय कर ²ढ़ इच्छाशक्ति के साथ कड़ी मेहनत करनी चाहिए, सफलता अवश्य मिलेगी।