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कहीं पुस्तकेंतो कहीं पुस्तकों के कद्रदान गायब

विद्वतजनों व संभ्रांतजनों के बीच वक्त गुजारने के लिए पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में बैठकर पुस्तकों का अध्ययन करना सबसे बेहतर स्थान माना जाता था। बदलते समय के साथ बढ़ती व्यस्तता व डिजिलाइजेशन के बढ़ते प्रभाव ने पुस्तकालयों पर मानों ग्रहण लगा दिया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 14 Nov 2018 06:00 PM (IST)Updated: Wed, 14 Nov 2018 10:57 PM (IST)
कहीं पुस्तकेंतो कहीं पुस्तकों के कद्रदान गायब
कहीं पुस्तकेंतो कहीं पुस्तकों के कद्रदान गायब

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : विद्वतजनों व संभ्रांतजनों के बीच वक्त गुजारने के लिए पुस्तकालय (लाइब्रेरी) में बैठकर पुस्तकों का अध्ययन करना सबसे बेहतर स्थान माना जाता था। बदलते समय के साथ बढ़ती व्यस्तता व डिजिलाइजेशन के बढ़ते प्रभाव ने पुस्तकालयों पर मानों ग्रहण लगा दिया। लिहाजा कहीं पुस्तकें गायब हैं तो कहीं पुस्तकों के कद्रदानों का टोटा है। जिला मुख्यालय नगर ज्ञानपुर में ही स्थापित आदित्य पुस्तकालय भी महज समाचार पत्रों तक सिमटकर रह गया है। चंद मात्र सदस्यों को छोड़ दिया जाय तो कोई वहां जाना तक नहीं चाहता।

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दरअसल, पहले लोग ज्ञानपरक पुस्तकों का अध्ययन करने को लेकर पुस्तकालयों आदि की सदस्यता ग्रहण करते थे। कारण था कि तमाम पुस्तकें महंगी होने के प्रत्येक व्यक्ति की पहुंच से बाहर होती थी। ऐसे में लोग पुस्तकालय का सहारा लेकर लाभ हासिल कर लिया करते थे। संभ्रांत व सुविधा संपन्न परिवारों में पुस्तकालयों व क्लबों की सदस्यता लेना भी शान की बात समझी जाती थी। हालांकि आम जीवन में इंटरनेट की बढ़ते दखल से लोगों को हर चीजें घर बैठे मोबाइल, लैपटाप, आइपैड, टैबलेट आदि पर हासिल हो जा रही हैं। यहां तक की पूरी की पूरी पुस्तक लोगों को वेबसाइट पर उपलब्ध हो जा रही है। लिहाजा पुस्तकालयों के प्रति लोगों की रुझान घटती गई। ऐसे में जब पुस्तकालयों में पढ़ने वालों की संख्या घटती गई तो पुस्तकों से पुस्तकालय खाली होते गए। कभी जिला मुख्यालय नगर ज्ञानपुर नगर की शान समझे जाने वाले आदित्य पुस्तकालय भी आज पुस्तकों से खाली है। महज कुछ समाचार पत्रों के जरिए उसका नाम ¨जदा रखा गया है। लोगों का मानना है कि जब कोई पढ़ने वाला ही नहीं है तो फिर पुस्तकें क्यों रखी जाय।


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