सम्मानित व्यक्ति का अपमान, हत्या के समान
जागरण संवाददाता, सुरियावां (भदोही) : क्षेत्र के पूरेमनोहर अभियां में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत
जागरण संवाददाता, सुरियावां (भदोही) : क्षेत्र के पूरेमनोहर अभियां में चल रहे सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन सोमवार को कथावाचक पं जटाशंकर दुबे सूत-शौनक संवाद के माध्यम से भागवत पुराण के अनेक प्रसंगों पर प्रकाश डाला। शुकदेव के जन्म से लेकर राजा परीक्षित के श्रापित होने तक की कथा कही।
भीष्म पितामह कथा प्रसंग के माध्यम से महाराज जी ने कहा कि दुर्योधन को प्रसन्न करने के लिए अश्वत्थामा ने पांचो पांडव पत्रों के सिर काटकर दुर्योधन के हाथ में दिया। दुर्योधन पांडव पुत्रों के कटे हुए सिर को देखकर रोने लगा और गुरु पुत्र को काफी-डांट फटकार लगाई तथा अपने प्राण का परित्याग कर दिया।
इधर जब विजयोत्सव मनाने के बाद द्रौपदी सहित पांडव जब अपने महल में पहुंचे तब अपने पुत्रों के धड़ को देखा। द्रौपदी विलाप करने लगीं। अर्जुन ने द्रौपदी को ढांढस बंधाते हुए यह प्रतिज्ञा किया कि जब तक हत्यारे अश्वत्थामा का तुम्हारे सामने वध नहीं करूंगा तब तक अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा।
भगवान श्रीकृष्ण को सारथी बनाकर अश्वत्थामा को पकड़कर पशु की तरह बांधकर रथ की पहिए से घसीटते हुए अर्जुन ने द्रौपदी के सामने लाकर खड़ा कर दिया। द्रोपदी ने गुरुपुत्र को प्रणाम करके अर्जुन से उसे छोड़ने की बात कही।भगवान ने कहा कि अर्जुन तुम मेरे दोए आदेशों का पालन एक साथ करो ब्राह्मण का वध नहीं करना चाहिए और आततायी को छोड़ना नहीं चाहिए। अर्जुन भगवान के इस मर्म को समझ गए और अश्वत्थामा का सिर मुंडन दिया तथा उसके सिर से मणि निकाल कर धक्का मारकर शिविर से बाहर कर दिया।मुंडन करना, समाज में किसी सम्मानित व्यक्ति का अपमान करना हत्या के समान होता है। भगवान के दोनों आदेशों का अर्जुन ने सम्यक रूप से पालन किया। इस मौके पर बृजभूषण दुबे, मगन दुबे, गोपाल दुबे, रामजी दुबे, सूरज दुबे आदि थे।