Move to Jagran APP

दुर्लभ ग्रंथ और पत्रिकाओं का भंडार है राजकुमार का पुस्तकालय

शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक, आत्मिक और सांस्कृतिक विकास में अत्यधिक सहायक होते हैं पुस्तकालय। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि प्रत्येक घर में एक पुस्तकालय होना चाहिए, संपूर्ण विकास के लिए यही रामबाण औषधि है। बाल गंगाधर तिलक कहा करते थे कि मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा, क्योंकि जहां पुस्तकें होंगी, वहीं स्वर्ग बन जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 12:02 AM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 12:02 AM (IST)
दुर्लभ ग्रंथ और पत्रिकाओं का भंडार है राजकुमार का पुस्तकालय
दुर्लभ ग्रंथ और पत्रिकाओं का भंडार है राजकुमार का पुस्तकालय

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर(भदोही): शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक, आत्मिक और सांस्कृतिक विकास में अत्यधिक सहायक होते हैं पुस्तकालय। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि प्रत्येक घर में एक पुस्तकालय होना चाहिए, संपूर्ण विकास के लिए यही रामबाण औषधि है। बाल गंगाधर तिलक कहा करते थे कि मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूंगा, क्योंकि जहां पुस्तकें होंगी, वहीं स्वर्ग बन जाएगा। शायद इन्हीं पंक्तियों को आत्मसात कर राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त सेवानिवृत्त शिक्षक राजकुमार पाठक ने अपने निजी आवास पर दुर्लभ ग्रंथ और पत्र- पत्रिकाओं को संग्रहित कर ज्ञान का भंडार बना लिया। खुद तो अध्ययन करते हैं गांव और आस-पास के लोग भी अपने ज्ञान वृद्धि के लिए यहां रोजाना आते हैं।

loksabha election banner

भिदिउरा गांव निवासी राजकुमार पाठक बताते हैं कि ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन पुस्तकालय है। इसके साफ वातावरण में अध्ययन लीन होकर कोई भी व्यक्ति ज्ञान की अनेक मणि प्राप्त कर सकता है। प्राचीन दुर्लभ ग्रंथों की प्राप्ति भी पुस्तकालयों से ही हो सकती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में उनके पुस्तकालय में पांच हजार से अधिक पुस्तकें संग्रहित हैं। इसके अलावा पांच सौ से अधिक कविता संग्रह भी हैं। बताया कि ¨हदू के अलावा बाइबिल, कुरान सहित अन्य धर्मों के भी ग्रंथ हैं। धर्मयुग, कादम्बिनी, काव्य कला मासिक पत्रिका आदि कई पुरानी पत्र- पत्रिकाओं को संग्रहित किया गया है। स्थानीय के अलावा आस-पास गांव के लोग भी पुस्तकों का अध्ययन करने के लिए आते हैं। हां यह बात दीगर है कि किसी पुस्तक को घर ले जाने के लिए अनुमति नहीं दी जाती है। वह इसलिए कि जो लोग पुस्तक ले जाते हैं वह वापस नहीं करते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.