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सवाल! क्या कर रहा परिवहन विभाग

शनिवार की सुबह नौनिहालों के जीवन के लिए अभिशाप बनकर सामने आई बच्चों से भरी स्कूल वैन जलने की घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर जांच के नाम पर क्या कर रहा था परिवहन विभाग।

By JagranEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 11:24 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 11:24 PM (IST)
सवाल! क्या कर रहा परिवहन विभाग
सवाल! क्या कर रहा परिवहन विभाग

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : शनिवार की सुबह नौनिहालों के जीवन के लिए अभिशाप बनकर सामने आई बच्चों से भरी स्कूल वैन जलने की घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर जांच के नाम पर क्या कर रहा था परिवहन विभाग। जबकि आए दिन स्कूल वाहनों की जांच के नाम पर बड़े-बड़े दावे किये जाते रहते हैं।

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दरअसल, आए दिन परिवहन विभाग के अधिकारियों की ओर से दिशा निर्देश जारी किया जाता रहता है कि तय मानक के अनुरूप बसों को ही स्कूल वाहन के रूप में संचालित किया जाय। इसके साथ यह भी दावा करने में कोई संकोच नहीं किया जाता कि स्कूल वाहनों की जांच व फिटनेस के लिए समय-समय पर अभियान भी चलाया जाता है। बावजूद इसके सड़कों पर बच्चों को लेकर फर्राटा भरते ऑटो रिक्शा व पिकअप जैसे वाहनों पर विभागीय अधिकारियों का नजर क्यों नहीं पड़ती। शनिवार को जिस बच्चों से भरी जिस वैन में घरेलू गैस सिलेंडर से लगी आग ने बच्चों को जीवन भर के लिए कुरूपता का अभिशाप दे दिया, आखिर वह आज तक कैसे संचालित होती रही। इससे भी बढ़कर बड़ी बात यह रही कि वाहन को कैसे घरेलू गैस सिलेंडर से जोड़कर चलाया जाता रहा। बहरहाल जो भी हो लेकिन इस घटना से यह कहने से कत्तई इंकार नहीं किया जा सकता कि परिवहन विभाग जांच के नाम पर महज खानापूर्ति करता नजर आ रहा है।

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आराम से मुकर जाते हैं स्कूल प्रबंधन

- स्कूल वाहनों को लेकर होने वाले किसी भी हादसे, घटना-दुर्घटना को लेकर उस समय स्कूल प्रबंध तंत्र से जुड़े लोग यह कहकर बड़े आसानी से पल्ला झाड़ लेते हैं कि वाहन उनके विद्यालय का है ही नहीं। उदाहरण के तौर पर देखा जाय तो मौजूदा माह में ही दो जनवरी को सुरियावां थाना क्षेत्र के बीसापुर गांव में नौनिहालों को लेकर जा रहे स्कूल का वाहन पलटने से हड़कंप मच गया। गनीमत थी कि मौके पर पहले से ग्रामीण मौजूद थे और उनकी मदद से बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जिससे एक बड़ा खतरा टल गया। घटना के दौरान सबसे बड़ी बात जो सामने आई वह यह रही कि विद्यालय के प्रधानाचार्य ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि वाहन से उनके विद्यालय प्रबंधन का कोई सरोकार नहीं है। वह वाहन कैसे बच्चों को लेकर आती है उन्हें कुछ पता नहीं। इसमें सबसे बड़ा खेल यह होता है कि विद्यालय प्रबंध तंत्रों द्वारा बड़े ही चालाकी से प्राइवेट वाहनों को बच्चों को ढोने के लिए जोड़ लिया जाता है। और यह कह दिया जाता है कि उक्त वाहन अभिभावकों ने अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए लगाया गया होता है।


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