कामधेनु से प्रीति, भर रही रीत की रही झोली
किसी भी काम में जब मन लगाया जाय तो निश्चित ही सफलता मिलती है। आर्थिक तंगी के बीच घर-गृहस्थी की गाड़ी खींचने में आ रही मुश्किलों से उबरने को जब रीतलाल ने कामधेनु यानी गायों से प्रीति लगाई तो फिर तस्वीर बदल गई। आज के इस दौर में जब डेयरी स्थापना को घाटे का सौदा समझा जा रहा है। यहां तक कि जिले में कामधेनु व मिनी
मुहम्मद इब्राहिम, ज्ञानपुर भदोही
- किसी भी काम में जब मन लगाया जाय तो निश्चित ही सफलता मिलती है। आर्थिक तंगी के बीच घर-गृहस्थी की गाड़ी खींचने में आ रही मुश्किलों से उबरने को जब रीतलाल ने कामधेनु यानी गायों से प्रीति लगाई तो फिर तस्वीर बदल गई। आज के इस दौर में जब डेयरी स्थापना को घाटे का सौदा समझा जा रहा है। यहां तक कि जिले में कामधेनु व मिनी कामधेनु योजना के तहत शासन से ब्याजमुक्त ऋण देकर स्थापित कराई गई तीन व 17 डेयरी दम तोड़ चुकी हैं। संचालक इसे घाटे का सौदा मानते हुए बंद कर चुके हैं।
ऐसे दौर में भी बीरापट्टी के रीतलाल ने डेयरी की स्थापना कर दुग्ध उत्पादन का काम शुरू किया तो गरीबी व तंगहाली को मात देते हुए गरीबी उन्मूलन की मिशाल पेश कर दी। 30 गायों के जरिए प्रति दिन उत्पादित 250 लीटर दूध के जरिए जहां गृहस्थी संवर रही है तो गोबर से तैयार हो रहे कंपोस्ट का उपयोग कर की जा रही खेती में भी उत्पादन बढ़ चुका है।
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मिल चुका है गोकुल पुरस्कार
- वर्ष 2000 में उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर गो-पालन करते हुए डेयरी की शुरुआत की। 2015-16 में 25 गायों की डेयरी स्थापना के लिए आई माइक्रो कामधेनु योजना से जुड़कर व्यवसाय को बढ़ाना शुरू किया। मेहनत व लगन उस समय रंग लाती दिखी जब वर्ष 2017-18 में उनके द्वारा उत्पादित किए गए 23,000 लीटर दूध पर प्रदेश में सबसे अधिक दूध उत्पादन के लिए गोकुल पुरस्कार के लिए चयनित कर लिया गया। उन्हें 51 हजार रुपये का पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया।
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गोबर व गोमूत्र से कंपोस्ट बनाने की तैयारी
- यूं तो डेयरी से निकलने वाले गोबर को वह पहले से ही उचित स्थान पर निस्तारित करते हुए उसका उपयोग खेती में कर रहे थे। अब उन्होंने गोमूत्र एकत्र करने के लिए अलग टैंक का निर्माण कराया है। साथ ही गोबर को एकत्र कर उम्दा कंपोस्ट बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
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मिले बाजार तो बढ़े व्यवसाय
- रीतलाल ने बताया कि दुग्ध व्यापार के लिए जिले में उचित बाजार नहीं हैं। इससे पालकों को दिक्कत आती है। वैसे तो वह फुटकर के साथ पराग डेयरी को दूध देते हैं। साथ में खोवा, छेना व पनीर आदि भी तैयार कराते हैं लेकिन ज्यादा दूध की खपत के लिए ऐसे बाजार की जरूरत है जहां वह खप सके। बाजार मिले तो व्यवसाय और बढ़ेगा।