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मजदूरों की 60 लाख से अधिक मजदूरी बकाया, दूसरे काम की कर रहे तलाश

- चालू वित्तीय वर्ष के दो माह में काम करने के बाद भी नहीं मिला मेहनताना - रोजगार के चक्कर में भटक रहे पंजीकृत एक लाख बीस हजार श्रमिक

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 May 2022 05:37 PM (IST)Updated: Sat, 28 May 2022 05:37 PM (IST)
मजदूरों की 60 लाख से अधिक मजदूरी बकाया, दूसरे काम की कर रहे तलाश
मजदूरों की 60 लाख से अधिक मजदूरी बकाया, दूसरे काम की कर रहे तलाश

जागरण संवाददाता, ज्ञानपुर (भदोही) : महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना बेपटरी हो गई है। मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं मिल रही इससे वे मनरेगा से मुंह मोड़ रहे हैं। रोजी-रोजगार के दूसरे साधन खोज रहे हैं। काम करने के दो माह बाद भी मजदूरों की 60 लाख से अधिक मजदूरी बकाया है। प्रधानों और सचिवों के दरवाजे पर चक्कर लगाते-लगाते मजदूर परेशान हैं।

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ग्रामीण अंचलों से मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना इन दिनों छलावा साबित हो रही है। रोजगार की आस में गांव में ही रह रहे मजदूरों के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही है। रोटी के लाले पड़ गए हैं। हकीकत यह कि काम करने के बाद भी मजदूरों का भुगतान समय से नहीं हो रहा है। दो माह से काम करने के बाद भी जिले के सभी छह विकास खंडों में 60 लाख से अधिक मजदूरी बकाया है। मजदूरी का भुगतान समय से न होने से ग्राम प्रधान और सचिव भी काम कराने से मुंह मोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि यदि काम करा दिया जाए और मजदूरी समय से न मिले तो मजदूर विरोध प्रदर्शन करने लगते हैं।

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आर्थिक तंगी से जूझ रहे मजदूर

मजदूरों के लिए मनरेगा ही एक बड़ा आसरा है पर वह भी बंद है। काम कर भी दिया तो मजदूरी कब मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसे में परेशान और बेबस मजदूर धीरे-धीरे महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं। परिणाम यह कि गांव में मजदूर खोजे नहीं मिल रहे हैं। जिले में एक लाख बीस हजार मनरेगा का जाब कार्ड बना है। इसके तहत प्रस्तावित हजारों प्रोजेक्ट जहां-तहां ठप पड़े हैं।

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महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत केंद्र से बजट नहीं मिला है। बजट न होने से मजदूरी का भुगतान नहीं हो पा रहा है। कुछ दिन में श्रमिकों का पैसा आने की संभावना है।

राजाराम, उपायुक्त मनरेगा।


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