हनुमान जी ने सोने की लंका में आग लगा दी, हाहाकार
नगर के मर्यादपट्टी स्थित मैदान में चल रही श्री रामलीला की नौवीं निशा शनिवार की रात अयोध्या के कलाकारों द्वारा सबरी मिलन, हनुमान सुग्रीव मीलन, बालि वध, अशोक वाटिका, लंका दहन, सेतु बंधन आदि लीलाओं का मंचन किया गया। इस दौरान बड़ी तादाद में मौजूद श्रद्धालुओं ने देर रात तक लीला मंचन का आनंद लिया।
भदोही : नगर के मर्यादपट्टी स्थित मैदान में चल रही श्री रामलीला की नौवीं निशा में शनिवार की रात अयोध्या के कलाकारों ने सबरी मिलन, हनुमान सुग्रीव मिलन, बालि वध, अशोक वाटिका, लंका दहन, सेतु बंधन आदि लीलाओं का मंचन किया। इस दौरान बड़ी तादाद में मौजूद श्रद्धालुओं ने देर रात तक लीला मंचन का आनंद लिया।
दर्शकों ने सबरी मिलन के प्रसंग में भावुक हो कर प्रभु राम के आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया। प्रभु राम व लक्ष्मण मृग को मार कर जब कुटिया में आते हैं और सीता जी को नहीं पाते तो व्याकुल हो कर खोज में निकल जाते हैं। तभी पंख कटे घायल अवस्था में उन्हें जटायु मिलता है और प्रभु राम को रावण द्वारा सीता का हरण करने की जानकारी देता है। इसके बाद जटायु प्रभु राम के गोद में प्राण त्याग देता है। तब प्रभु राम जटायु का अंतिम संस्कार करने के बाद माता सीता की खोज में निकल जाते हैं। खोजते खोजते सबरी के आश्रम पहुंचते हैं। वहां सबरी प्रभु राम को अपने जूठे बेर खिलाती है। सबरी के कहने पर प्रभु राम सुग्रीव से मिलने पर्वत पर जाते हैं। वहां सुग्रीव से गुफा में रहने का कारण पूछते हैं। तब सुग्रीव ने अपने भाई बालि द्वारा मारपीट कर भगा देने की बात बताई जाती है। प्रभु श्री राम सुग्रीव को इंसाफ दिलाने का प्रण करते हैं और बालि से युद्ध करने के लिए सुग्रीव भेजते हैं। पहले युद्ध में सुग्रीव बालि से पिट कर आता है और प्रभु राम के समक्ष नाराजगी व्यक्त करते हुए अपने शरीर के जख्म दिखाता है। तब प्रभु राम सुग्रीव के सर पर हाथ फेरते हैं। सुग्रीव का सब दर्द दूर हो जाता है। तब प्रभु राम ने कहा की दोनों भाई एक समान दिखते हो इस लिए मै बाण नहीं चला सका। प्रभु ने सुग्रीव को माला पहनाकर पुन: युद्ध करने को भेजा और युद्ध के दौरान बालि का वध कर दिया। इसके बाद सुग्रीव को राजा बनाकर साथ ही बालि पुत्र अंगद को सेनापति नियुक्त किया। इसके अलावा कलाकारों द्वारा अशोक वाटिका, लंका दहन व सेतु बंधन का प्रसंग भी सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया। सीता जी की खोज में प्रभु राम हनुमान, जामवंत व वानर सेना को चारों दिशाओं में भेजते हैं। समुद्र के किनारे गुफा में रुंपाती ने लंका का पता बताया और कहा की समुद्र उस पार जाना होगा। तो जामवंत के कहने पर हनुमान जी समुद्र लांघने के लिए उड़ते हैं। इस दौरान समुद्र में राक्षसी अपना मुंह फैला देती है तब हनुमान जी अपना छोटा रूप बनाकर मुंह के अंदर जाते हैं और बाहर निकल जाते हैं और लंका पंहुचते हैं। वहां विभिषण के बताने पर अशोक वाटिका पंहुचते हैं और सीता जी को प्रभु राम की अंगूठी दिखाते हैं। वहीं हनुमान जी के पूंछ में मेघनाथ आग लगाता है तब हनुमान जी लंका में जगह जगह आग लगा देते है। सीता जी के आदेश से वापस लौटते है। कलाकारों द्वारा समुद्र पर सेतु बनाने का प्रसंग भी खूब पंसद आया। प्रभु राम ने समुद्र से रास्ता मांगा लेकिन रास्ता न मिलने पर समुद्र सुखाने के लिए अग्नि वाण उठाते हैं तब समुद्र देव प्रकट हो कर अपने ऊपर नल नील की सहायता से पुल बनाने को कहते हैं। पुल स्थापना के बाद प्रभु राम वानर सेना के साथ लंका पंहुचते हैं। इस मौके पर पालिकाध्यक्ष अशोक जायसवाल, विनीत बरनवाल, सुभाष मौर्या, फूलचंद्र मौर्या, ओम¨सह, ¨प्रस गुप्ता, गिरधारी जायसवाल, सतीश गुप्ता आदि थे।