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साहित्यिक साधना से होती है धर्म की सेवा

साहित्यिक साधना से धर्म की सेवा होती है। ऐसे तीर्थ में किये गए व्यय की तुलना ने कई गुना अधिक प्रतिफल प्राप्त होता है। काशी-प्रयाग के मध्य गंगा तट पर पुरवां, इब्राहिमपुर में स्थित अजोराधाम में आयोजित महोत्सव में मंगलवार तीसरे व अंतिम दिन पहुंचे महामना मदन मोहन मालवीय के पपौत्र व बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के सम्प्रति कुलाधिपति न्यायमूर्ति पं गिरधर मालवीय ने यह बातें कहीं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 04:53 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 04:53 PM (IST)
साहित्यिक साधना से होती है धर्म की सेवा
साहित्यिक साधना से होती है धर्म की सेवा

जागरण संवाददाता, ऊंज (भदोही) : साहित्यिक साधना से धर्म की सेवा होती है। ऐसे तीर्थ में किए गए व्यय की तुलना में कई गुना अधिक प्रतिफल प्राप्त होता है। पुरवां, इब्राहिमपुर में स्थित अजोराधाम में आयोजित महोत्सव में अंतिम दिन पहुंचे महामना मदन मोहन मालवीय के प्रपौत्र व बीएचयू के कुलाधिपति न्यायमूर्ति पं गिरधर मालवीय ने ये बातें कहीं। उन्होंने शिखा तमध्वसिनी नामक ग्रंथ का विमोचन भी किया।

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उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ अजोराधाम में पहुंचने अद्भुत शांति मिली। यह स्थान सिद्धपीठ है। ऐसे तीर्थ के कार्य में समय व्यतीत होना सौभाग्य की बात होती है। इस मौके पर काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ करते हुए डा. सुरेश पांडेय मंजुल ने आपसी भाईचारे व देश प्रेम का जोश भरा। डा. कामिनी वर्मा ने गंगा की स्वच्छता को समर्पित रचना प्रस्तुत की। डा. माया त्रिपाठी ने संस्कृत में काव्य पाठ किया। डा. राजकुमार पाठक ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को लोटपोट कर दिया। कमला पांडेय, उमाशंकर मिश्र रसेंदु, रामेश्वर मिश्र आदि ने काव्य पाठ किया। आयोजक महान्यायविद् परमेश्वरनाथ मिश्र सहित रेखा मिश्रा, सोमेश्वरनाथ मिश्र, रामबली ¨सह, हीरामणि यादव व अन्य महोत्सव संपन्न कराने में जुटे रहे।


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