हुजूर! रायपुर में रहते तो भूखे मर जाते
लॉकडाउन के दौरान परदेस में भूखों मरने की नौबत आ गई थी। कामकाज बंद मकान मालिक का किराए के लिए दबाव जमा कर रखी गई पूंजी समाप्त हो गई। कर्ज देने के लिए कोई तैयार नहीं था। ऐसे में भूखों मरने से बेहतर था किसी तरह अपनों तक पहुंचने की लालसा। गैर प्रांतों से लौटे प्रवासियों की यह व्यथा सुनकर लोगों का मन पसीज उठे।
महेंद्र तिवारी, चौरी (भदोही)
लॉकडाउन हुआ तो पहले नौकरी गई। कंपनी ने मना कर दिया दफ्तर आने को। सेलरी भी फंस गई। पूरा परिवार के सामने रहने-खाने का संकट पैदा हो गया। कुछ दिन किसी चला, घर की पूंजी भी खत्म हो गई। रायपुर जैसे महानगर में भूखे मरने जैसी स्थिति पैदा हो गई। मकान मालिका किराये का दबाव बनाने लगा। वह मानने को कतई तैयार नहीं। कोई कर्ज देने के लिये भी तैयार नहीं था। इतनी तकलीफ पूरे जीवन में हमने नहीं झेले। अब अपने घर पहुंचे तो सुकून मिला। यह दर्द है लठिया गांव के शैलेंद्र कुमार का, वह छत्तीसगढ़ स्थित मार्केटिग कंपनी में जॉब करते थे लेकिन लॉकडाउन के बाद इन्होंने अपने घर लौटने के लिये खूब समस्या झेली। अब वह दोबारा रायपुर नहीं जाना चाहते, भदोही में ही रोजगार की संभावनाएं तलाशने में जुट गये हैं। इनके जैसे कई प्रवासियों का यही दर्द है।
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निजी साधन से लौटे हैं 26 मई को
26 मई को वे अपने परिवार के साथ निजी साधन से रायपुर से घर लौटे हैं। बताया कि एक माह तो जैसे-तैसे गुजारा किया लेकिन इसके बाद समस्या शुरू हो गई। उन्हें घर पहुंचने में तीन दिन लगे। रास्ते में खूब दुश्वारियां झेली।
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जौनपुर पहुंचाने का वादा, लेकिन अंबेडकर नगर में उतार दिया
मुंबई से स्पेशल श्रमिक ट्रेन से 20 मई को रवाना हुए लठियां निवासी वीरेंद्र तिवारी परिवार के साथ 85 घंटे का सफर तय करने के बाद 23 मई को घर पहुंचे थे। यात्रा संघर्ष को बताते हुए उनकी आंख भर आई। बताया कि स्टेशन पर सुबह 8 बजे ही बुलाया गया था, लेकिन ट्रेन शाम सात बजे रवाना हुई। बताया गया था कि जौनपुर तक ट्रेन जाएगी लेकिन अंबेडकर नगर में उतार दिया गया। वहां से बस से जौनपुर पहुंचे, फिर भदोही भेजा गया। निजी कंपनी में नौकरी करने वाले वीरेंद्र ने बताया कि लॉकडाउन लगते ही कंपनी बंद हो गई। सरकार के आदेश के बाद भी वेतन नहीं मिला। तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस उम्मीद के साथ किराए के कमरे में ताला बंद करके आया हूं ताकि हालात ठीक होते ही वापस होना है।