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चित्र.17--श्रद्धा का महासावन

भारतीय वाग्मय में संहारकर्ता रूप में समीकृत भगवान शिव जनमानस में देवाधिदेव महादेव शीघ्र प्रसन्न होने वाले मनोवांछित फल प्रदान करने वाले आशुतोष भोले भंडारी के नाम से लोकप्रिय हैं। शिव के उपासकों को शैव कहा जाता है। भारत में शिव का अस्तित्व प्रागैतिहासिक काल से ही रहा है। उनकी उपासना लिग रूप में भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए की जाती थी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 09:57 PM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 09:57 PM (IST)
चित्र.17--श्रद्धा का महासावन
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त्रिदेवों के उदय का मूल आधार हैं शिव

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भारतीय वाग्मय में संहारकर्ता रूप में समीकृत भगवान शिव जनमानस में देवाधिदेव महादेव, शीघ्र प्रसन्न होने वाले, मनोवांछित फल प्रदान करने वाले आशुतोष, भोले भंडारी के नाम से लोकप्रिय हैं। शिव के उपासकों को शैव कहा जाता है। भारत में शिव का अस्तित्व प्रागैतिहासिक काल से ही रहा है। उनकी उपासना लिग रूप में भूमि की उर्वरता बढ़ाने के लिए की जाती थी। कालक्रम में वह त्रिशूलधारी पशुपति के रूप में पूजित होने लगे हैं। ऋग्वेद में रुद्र, शब्द का उल्लेख मिलता है। रुद्र अग्नि के प्रतीक हैं। अपने शांत जगत के मंगलकारी रूप में वह शिव हैं तथा विनाशक और रौद्र रूप में शिव हैं। इन्हें मृत्यु का देव भी माना जाता है।

शिव का सौम्य कल्याणकारी रूप ज्यादा लोकप्रिय है। पार्वती उनकी सहचरी हैं तथा गणेश और कार्तिकेय उनके पुत्र। शिव साकार तथा निराकार दोनों रूपों में पूजित हैं। निराकार रूप में वह निर्विकारी, सच्चिदानंद स्वरूप तथा परब्रह्म हैं तथा साकार रूप से सृष्टि को उत्पन्न करने वाले, उसे अच्क्षुण रखने वाले तथा प्रलय लाने वाले हैं। शिव एक रूप होते हुए तीन भिन्न-भिन्न रूपों वाले हैं। विष्णु रूप में वह जगत के पालनकर्ता, ब्रह्मरूप में सृष्टि के रचयिता तथा हर रूप में संहारकर्ता हैं। शिवपुराण की ²ष्टि में शिव तथा विष्णु अभिन्न हैं। इसी प्रकार शिव तथा रुद्र में भी पार्थक्य नहीं है। समस्त जगत शिवरूप है। शिव ही सत्य है, शिव ही ज्ञान तथा शिव ही अनंत रूप और सबका मूल रूप है। शिव जब सतोगुण, रजोगुण तथा तमोगुण से युक्त होकर सृष्टि रचना के कार्यों में संलग्न होते हैं तब वह ब्रह्मा की संज्ञा से सुशोभित होते हैं। शिव के बाएं अंग से विष्णु की उत्पत्ति होती है एवं दाएं अंग से ब्रह्मा की तथा हृदय से रुद्र की। अत: तीनों के उदय का मूल आधार शिव ही हैं। शिव की भक्ति लौकिक, वैदिक तथा आध्यात्मिक तीन प्रकार से की जाती है। लौकिक भक्ति में साधक दुग्ध, गोघृत, भांग, धतूरा, पुष्प, विल्व पत्र, रत्न, सुगंध आदि अर्पित की जाती है। वैदिक भक्ति वेद के मंत्रों द्वारा हविन्य आदि की आहुति द्वारा संपादित की जाती है। इस प्रकार शिव की ऐतिहासिकता जहां सर्वाधिक प्राचीन है। वहीं उनकी महत्ता अपरिमित है। शिव का ध्यान करते ही संपूर्ण शरीर में ऊर्जा का संचार स्वमेव प्रवाहित होने लगता है। शी‌र्घ्र प्रसन्न होकर मनोवांछित फल देने तथा सरल उपासना विधि के कारण शिव जनसाधारण में सर्वाधिक लोकप्रिय देवता हैं।

- डा. कामिनी वर्मा, एसोसिएट प्रोफेसर, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर।

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